बुधवार, 2 दिसंबर 2009

कविता


रश्मि प्रभा की दो कविताएँ
दुआओं के दीप
आंसुओं की नदी में
मैंने अपने मन को, अपनी भावनाओं को
पाल संग उतार दिया है.
आंसुओं के मध्य
जाने कितनी अजनबी आंखों से
मुलाक़ात हो जाती है-
फिर उन लम्हों को पढ़ते हुए
मेरी आँखें
उनके जज्बातों की तिजोरी बन जाती हैं।
जाने कितनी चाभियाँ
गुच्छे में गूंथी
मेरी कमर में,मेरे साथ चलती हैं
और रात होते
मेरे सिरहाने,
मेरे सपनों का हिस्सा बन जाती हैं,
जहाँ मैं हर आंखों के नाम
दुआओं के दीप जलाती हूँ !
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इल्तज़ा
‘घर’ एक विस्तृत शब्द है,
जहां रिश्तों के बीज पड़ते हैं !
’प्यार’ के ढाई अक्षर को जोड़ने का सलीका
सिखाया जाता है,
विनम्र मर्यादाओं की रेखाएं खींची जाती हैं!
घर के प्रवेश-द्वार पर ’विंड शाइम’ क्यूँ लगाते हैं?
निःसंदेह, जलतरंग - सी मीठी ध्वनि से
स्वागत द्वार खोलने के लिए।
’कड़वे बोल’ ना घर की शान होते हैं,
ना ही किसी की ‘जीत’ बनते हैं

कैक्टस लगा कर कितना लहू लुहान करोगे ?
सोच पर नियंत्रण न रख कर कितनों का अपमान करोगे?
फिर उनकी सर्द आंखो को ईर्ष्या का नाम दोगे?
आँसू कभी ईर्ष्या का सबब नही होते
उसे समझाना भी मुश्किल है अब!
तुम्हारी सारी सोच ज़हरीली हो चुकी है!
पर दोष तुम्हारा नहीं-"धृतराष्ट्र" का है ,
जिसने ‘दुर्योधन’ बनाने मे कोई कसर नही छोड़ी।
यहाँ, एक ‘दुर्योधन’ का होना ही काफी था
जो आज तक हावी है!
ऐसे मे, तुमसे वक़्त की इल्तज़ा है
अब कोई ‘दुर्योधन’ मत बनाना
और आँखो के रहते हुए
’धृतराष्टृ’ की उपाधि मत पाना।
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जन्म- १३ फरवरी, सीतामढी (बिहार)
शैक्षणिक योग्यता - स्नातक ( इतिहास प्रतिष्ठा )
रुचि - कलम और भावनाओं के साथ रहना
"कादम्बिनी" में और कुछ महत्त्वपूर्ण अखबारों में रचनायें प्रकाशित
ब्लॉग : मेरी भावनाएं (www.lifeteacheseverything.blogspot.com)
ई-मेल : rasprabha@gmail.com


14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सार्थक कवितायें हैं रश्मि जी.

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  2. आंसुओं के मध्य
    जाने कितनी अजनबी आंखों से
    मुलाक़ात हो जाती है-
    फिर उन लम्हों को पढ़ते हुए
    मेरी आँखें
    उनके जज्बातों की तिजोरी बन जाती हैं।

    rashmi ji

    ...bahut hi sundar abhivykti
    padhakr achchha laga

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  3. रश्मि जी,

    आपकी दोनों कविताएँ अलग अलग विषय लिए हुए हैं.

    पहली में जहाँ आपके मन की बात बहुत गहराई से निकली है..वहीँ दूसरी में घर संसार की बात को सहेजने की बात है..
    दोनों रचनाएँ मनन योग्य और सुन्दर हैं.

    सुन्दर कृतियाँ .....बधाई

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  4. sundar aur sahaj kavitaaon ke liye
    badhaaee aur shubh kamna.

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  5. Rashmi Prabha jee ne pahlee kavita
    mein ek jagah " zazbaaton" kaa
    istemaal kiyaa hai." Zazbaat" hona
    chahiye. " Zazba" lafz kaa bahu-
    vachan " zazbaat" hota hai ,
    zazbaaton nahin.

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  6. rashmi ji

    aap ki dono rachnayein ucch koti ki bhawanaon se outprot hain!!

    sadhvaad

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  7. rashmi ji,
    dono rachnayen behad gahri soch hai, ek mein man ki ahmiyat jyada hai, to dusre mein saamajik drishtikon...

    मेरे सपनों का हिस्सा बन जाती हैं,
    जहाँ मैं हर आंखों के नाम
    दुआओं के दीप जलाती हूँ !

    ऐसे मे, तुमसे वक़्त की इल्तज़ा है
    अब कोई ‘दुर्योधन’ मत बनाना
    और आँखो के रहते हुए
    ’धृतराष्टृ’ की उपाधि मत पाना।

    yaha par dekhi ki aap bihar ke sitamarhi ki rahne wali hain, bahut khushi hui. sundar rachna keliye badhai aapko.

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  8. रश्मि जी को दोनों कविताओं के लिए बधाई.

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  9. rashmee jee ki dono rachnayen kaaphe achchha prabhav chhodti hain men oonhen badhaai detaa hoon
    ashok andrey

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  10. rashmi prabha ki dono kavitaen achhi lagin vishesh roop se iltiza sach hai jab charon aur duryodhan aur dhritrashtra virajman ho tab apne aap ko inse bacha kar chalna hi jeevan ki sarthakta hai.
    -sudhir kumar rao
    raosudhir_55@yahoo.in

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  11. कविता के साथ कभी कभार ही इसी मुलाक़ात होती है | खूब ......

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