tag:blogger.com,1999:blog-10812366002166430212024-03-05T03:05:46.449-08:00साहित्य सृजनसाहित्य, विचार और संवेदना का संवाहकसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.comBlogger50125tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-47469150274912477562009-12-02T09:11:00.000-08:002009-12-03T06:34:14.282-08:00साहित्य सृजन – नवम्बर-दिसम्बर 2009‘साहित्य सृजन’ के इस अंक में आप पढ़ेंगे –“मेरी बात” स्तंभ के अन्तर्गत वरिष्ठ कथाकार रूप सिंह चंदेल का आलेख “साहित्यिक सर्वेक्षणों के मायने.”, कवयित्री- रश्मि प्रभा की कविताएं, कथाकार बलराम अग्रवाल की लघुकथाएँ, पंजाबी के युवा कथाकार जतिंदर सिंह हांस की पंजाबी कहानी “ बूँद बूँद कहानी ” का हिन्दी अनुवाद, ‘भाषांतर’ के अन्तर्गत डॉ0 रूपसिंह चन्देल द्वारा अनूदित प्रसिद्ध रूसी लेखक लियो तोलस्तोय के सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-34212300449074931422009-12-02T08:52:00.000-08:002009-12-02T09:10:34.810-08:00कविता रश्मि प्रभा की दो कविताएँ दुआओं के दीपआंसुओं की नदी में मैंने अपने मन को, अपनी भावनाओं कोपाल संग उतार दिया है. आंसुओं के मध्यजाने कितनी अजनबी आंखों सेमुलाक़ात हो जाती है-फिर उन लम्हों को पढ़ते हुएमेरी आँखेंउनके जज्बातों की तिजोरी बन जाती हैं। जाने कितनी चाभियाँगुच्छे में गूंथीमेरी कमर में,मेरे साथ चलती हैंऔर रात होतेमेरे सिरहाने,मेरे सपनों का हिस्सा बन जाती हैं,जहाँ मैं हर आंखों के नामदुआओं केसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-23972794925340651882009-12-02T08:41:00.000-08:002009-12-02T08:51:39.806-08:00लघुकथाएंदो लघुकथाएं/ बलराम अग्रवालगुलमोहरमकान के बाहर लॉन में सूरज की ओर पीठ किए बैठे जतन बाबू न जाने क्या-क्या सोचते रहते है। मैं लगभग रोजाना ही देखता हूँ कि वह सवेरे कुर्सी को ले आते हैं। कंधों पर शाल डाले, लॉन के किनारे पर खड़े दिन-ब-दिन झरते गुलमोहर की ओर मुँह करके, चुपचाप कुर्सी पर बैठकर वह धूप में सिंकने लगते हैं। कभी भी उनके हाथों में मैंने कोई अखबार या पुस्तक-पत्रिका नहीं देखी। इस तरह निठल्ले बैठेसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-91085471610171791072009-12-02T08:31:00.000-08:002009-12-02T10:41:45.932-08:00पंजाबी कहानीबूँद बूँद कहानीजतिंदर सिंह हांसअनुवाद: सुभाष नीरव''...भाई साहब, यह न समझना, मैं दारू के घूंट पर मर जाने वाला टुच्चा बंदा हूँ। मैं तो पूरा जट्ट हूँ। इस ढाबे पर मेरी ही दारू चलती है। दारू मैं फन्ने बनाता हूँ। आग ऐसी लगती है जैसे पट्रोल को लगती है। पंजाबी भाइयों के लिए तो मैं लंगर लगाये रखता हूँ। यहाँ आज भी मेरी ही दारू चलनी थी, पर अब थोड़े दिनों से बाजी उलटी पड़ी हुई है। सारी दुनिया मुँह फेर गयी। बस सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-74191514675897922272009-12-02T08:25:00.000-08:002009-12-02T08:30:40.535-08:00भाषांतरधारावाहिक रूसी उपन्यास(किस्त-10)हाजी मुरादलियो तोलस्तोयहिन्दी अनुवाद : रूपसिंह चंदेल॥ दस ॥अगले दिन जब हाजी मुराद को वोरोन्त्सोव के पास लाया गया, प्रिन्स का प्रतीक्षा-कक्ष लोगों से खचाखच भरा हुआ था। खुरदरी मूंछोंवाला जनरल पूरी फौजी ड्रैस और तमगे धारण किये हुए, छुट्टी मंजूर करवाने के लिए वहाँ उपस्थित था। एक रेजीमेण्टल कमाण्डर वहाँ था, जिसे रेजीमेण्ट की सप्लाई के दुरुपयोग के लिए अभियोग की चेतावनी सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-47873263031875324952009-12-02T08:11:00.000-08:002009-12-02T08:19:23.307-08:00पुस्तक समीक्षा कृति : पिछले पन्ने की औरतें(उपन्यास)लेखिका - शरद सिंहसामयिक प्रकाशन,3320-21, जटवाड़ा, नेताजी सुभाष मार्गदरियागंज, नई दिल्ली-110002पृष्ठ : 304, मूल्य : 150 रुपये(पेपर बैक) कई-कई बार इस कृति को पढ़ना ज़रूरी - परमानन्द श्रीवास्तवरोमांस की मिथकीयता के लिए कोई भी कथा छलांग लगा सकती है। शरद सिंह का उपन्यास 'पिछले पन्ने की औरतें' बेड़िया समाज की देह व्यापार करने वाली औरतों की यातना भरी दास्तान है। शरद सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-87595193589127332562009-10-14T05:02:00.000-07:002009-10-14T05:19:45.016-07:00साहित्य सृजन – सितम्बर-अक्तूबर 2009 ‘साहित्य सृजन’ के इस अंक में आप पढ़ेंगे – हिन्दुस्तान की मशहूर ग़ज़ल गायिका बेगम अख़्तर की पुण्य-तिथि(30 अक्तूबर) पर “मेरी बात” स्तंभ के अन्तर्गत कथाकार अशोक गुप्ता का मार्मिक आलेख “जब तवक्को ही उठ गयी गालिब....”, समकालीन हिंदी कविता में अपनी विशिष्ट और पृथक पहचान रखने वाली कवयित्री कात्यायनी की कविताएं, सुपरिचित हिंदी कवयित्री-कथाकार अलका सिन्हा की कहानी “फिर आओगी न”, एक अरसे बाद लेखन में पुन: सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-89718799239084298612009-10-14T04:45:00.000-07:002009-10-14T06:48:52.846-07:00कविताकात्यायनी की पाँच कविताएँ(1) कला और सचकला कोमाँजा और निखारा जायइस हद तक किसच के बारे मेंलिखी जा सकेएक सीधी-सादी छोटी-सीकविता !(2) बेहतर है...मौत की दया परजीने सेबेहतर हैज़िन्दा रहने कीख्वाहिश के हाथों मारा जाना !(3) ऐसा किया जाए कि...ऐसा किया जाए किएक साज़िश रची जाए।बारूदी सुरंगे बिछाकरउड़ा दी जाएचुप्पी की दुनिया।(4) बारिश के बाददिपदिपाती हैंपनीली ललछौंह आँखेंजी भर रो लेने के बादप्यार से भरकर।धुलेसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-14401932702918552912009-10-14T04:33:00.000-07:002009-10-14T04:45:16.910-07:00लघुकथाएं दो लघुकथाएं/सुधीर रावकोशिशएक महीना अस्पाल में रहने के बाद वह आज घर लौटा। बैसाखियों के सहारे चलता-चलता अंदर आया और बिस्तर पर लेट-सा गया।शाम होते-होते घर में लोगों का आना-जाना शुरू हो गया। सभी हमदर्दी जता रहे थे। पड़ोस के शर्मा जी बोले- ''भैया, परमात्मा का शुक्र मनाओ, जो बच गए। कहीं बदन पर से पहिया निकल जाता तो बच्चे अनाथ हो जाते।'' तभी पांडे जी बोले, ''यह भौजाई का पुण्य है जो काम आया।''रात का खानासुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-73429952760428579972009-10-14T04:17:00.000-07:002009-10-14T04:33:10.511-07:00हिंदी कहानीफिर आओगी नअलका सिन्हाअब गाड़ी भीतरी सड़क पर आ गई थी। इसी सड़क की दूसरी तरफ- ठीक वहाँ, वो रहा वो मैदान, जहाँ हम खेला करते थे। स्कूल से लौटते ही इस मैदान में आ जमा होते थे। सारी दोपहर, सारी शाम बीत जाती थी, पर हमारे खेल खत्म नहीं होते थे। ''अच्छा तेरी बारी आई तो अब देर हो रही है।'' सब एक-दूसरे को घेर लेते थे। पापा वहाँ उस कोने के मकान से ही हांक लगाते थे, ''जल्दी आओ, रात हो रही है।'' ''शीलू... सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-60266183022753372172009-10-14T04:07:00.000-07:002009-10-14T04:15:25.327-07:00भाषांतर धारावाहिक रूसी उपन्यास(किस्त-9)हाजी मुरादलियो तोलस्तोयहिन्दी अनुवाद : रूपसिंह चंदेल॥ नौ ॥माइकल साइमन वोरोन्त्सोव की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। वह रूसी राजदूत का पुत्र था और उस समय के ऊँचे पद वाले रूसी सैनिकों और अधिकारियों में विशिष्ट यूरोपीय संस्कृति का पोशक था। वह महत्वाकांक्षी, मृदुभाषी, अपने कनिष्ठों के प्रति सहृदय और वरिष्ठों के साथ जटिल और कूटनीतिज्ञ था। प्रभुत्व और सम्मान के बिना जीवन सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-22213290713904972412009-10-14T03:57:00.000-07:002009-10-14T04:06:45.214-07:00पुस्तक समीक्षाआम औरत, जिन्दा सवाललेखिका – सुधा अरोड़ासामयिक प्रकाशन3320-21 , जटवाड़ा , नेताजी सुभाष मार्ग ,दरियागंज , नई दिल्ली- 110 002 .मूल्य : सजिल्द संस्करण रुपए 300 /- पेपरबैक 120/-आम औरत के सवालों पर लिखी गई एक खास किताब -शालिनी माथुरइक्कीसवी शताब्दी के इस पहले दशक में एक प्रश्न यह है कि विचार धाराओं और मूल्यों के प्रति सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-33286131821777276912009-10-14T03:33:00.000-07:002009-10-14T03:57:39.792-07:00गतिविधियाँकुंवर नारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कारहिन्दी के वरिष्ठ व लब्ध-प्रतिष्ठित कवि कुंवर नारायण को भारतीय भाषाओं के साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए 41वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद भवन के बालयोगी सभागार में एक गरिमामय समारोह में कुंवर नारायण को वर्ष 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। सम्मान में 7 लाख रुपये की राशि, वनदेवी की प्रतिमा, प्रशस्तिपत्र, सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-83515636009214955282009-07-27T10:24:00.000-07:002009-07-27T10:34:35.968-07:00साहित्य सृजन – जुलाई-अगस्त 2009‘साहित्य सृजन’ के इस अंक में हिंदी अकादमी, दिल्ली के ताज़ा प्रकरण पर “मेरी बात” स्तंभ के अन्तर्गत पढ़ें- डॉ0 रूपसिंह चन्देल का आलेख ‘दिल्ली में क्या साहित्यकारों का अभाव है?” इसके अतिरिक्त, समकालीन हिंदी कविता में उभरती हुई कवयित्री सुश्री ममता किरण के चार कविताएं, हिंदी की प्रख्यात कथा लेखिका सुधा अरोड़ा की कहानी ‘डेजर्ट फोबिया उर्फ़ समुद्र में रेगिस्तान’, पंजाबी लघुकथा की प्रथम पीढ़ी के चर्चित और सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-51147654791977236232009-07-27T10:05:00.000-07:002009-07-28T10:51:28.378-07:00कविताममता किरण की चार कविताएँ(1)स्त्रीस्त्री झाँकती है नदी मेंनिहारती है अपना चेहरासँवारती है अपनी टिकुली, माँग का सिन्दूरहोठों की लाली, हाथों की चूड़ियाँभर जाती है रौब सेमाँगती है आशीष नदी सेसदा बनी रहे सुहागिनअपने अन्तिम समयअपने सागर के हाथों हीविलीन हो उसका समूचा अस्तित्व इस नदी में।स्त्री माँगती है नदी सेअनवरत चलने का गुणपार करना चाहती हैतमाम बाधाओं कोपहुँचना चाहती है अपने गन्तव्य तक।स्त्री माँगती सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-64290561751479268602009-07-27T09:52:00.000-07:002009-07-27T10:04:55.116-07:00लघुकथाएं दो लघुकथाएं/श्यामसुंदर अग्रवाललड़का लड़कीगुप्ताजी की बेटी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था- एक लड़का था, दूसरी लड़की। पति-पत्नी दोनों हालचाल जानने व बधाई देने के लिए बेटी की ससुराल पहुँचे।दो-तीन घंटे वहाँ व्यतीत करने के पश्चात् जब वे वापस आने लगे तो समधी ने बात छेड़ी, ''दो नवजात शिशुओं का एक साथ पालन-पोषण करना बहुत कठिन है। अगर दोनों में से एक को आप ले जाते तो...।''गुप्ताजी को समधी का सुझाव ठीक लगा। सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-19855385256310443692009-07-27T09:41:00.000-07:002009-07-27T09:52:11.179-07:00हिंदी कहानीडेजर्ट फोबिया उर्फ समुद्र में रेगिस्तानसुधा अरोड़ादिन, हफ्ते, महीने, साल .... लगभग पैंतीस सालों से वे खड़ी थीं - खिड़की के आयताकार फ्रेम के दो हिस्सों में बंटे समुद्र के निस्सीम विस्तार के सामने - ऐसे, जैसे समुद्र का हिस्सा हों वे। हहराते - गहराते समुद्र की उफनती पछाड़ खाती फेनिल लहरों की गतिशीलता के बीच एकमात्र शांत, स्थिर और निश्चल वस्तु की तरह वे मानो कैलेंडर में जड़े एक खूबसूरत लैंडस्केप का अभिन्नसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-28365479182222453662009-07-27T09:31:00.000-07:002009-07-27T09:40:44.242-07:00भाषांतरधारावाहिक रूसी उपन्यास(किस्त-8)हाजी मुरादलियो तोलस्तोयहिन्दी अनुवाद : रूपसिंह चंदेल॥ आठ ॥जिस दिन पीटर आवदेयेव की वोज्दविजेन्स्क अस्पताल में मृत्यु हुई, उसी दिन उसका वृद्ध पिता, भाभी और उसकी जवान बेटी बर्फ़ जमे खलिहान में जई गाह रहे थे। शाम को बहुत अधिक बर्फ़ गिरी थी, और कुछ ही देर में जमकर वह सख्त हो गयी थी। वृद्ध व्यक्ति मुर्गे की तीसरी बांग पर ही जाग गया था, और, तुषाराच्छन्न खिड़की से चाँद की चटख सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-3025906554229241292009-07-27T09:27:00.001-07:002009-07-27T09:31:08.363-07:00गतिविधियाँआलोक श्रीवास्तव को दुष्यंत कुमार पुरस्कारमध्यप्रदेश साहित्य अकादमी ने इस बार अपना प्रतिष्ठित 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' युवा ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव को देने की घोषणा की है. आलोक को यह पुरस्कार उनके बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह 'आमीन' के लिए दिया जाएगा. साल 2007 में प्रकाशित इस संग्रह के लिए आलोक श्रीवास्तव को मिलने वाला यह तीसरा प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार है. इससे पहले उन्हें राजस्थान के 'डॉ. सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-20086563659016081532009-05-11T08:44:00.000-07:002009-05-11T08:56:03.160-07:00साहित्य सृजन – मई-जून 2009“साहित्य सृजन” के सितंबर-अक्तूबर 2008 के अंक के बाद किसी तकनीकी समस्या के चलते अगला अंक पोस्ट करने में काफी विलम्ब हुआ है जिसका हमें खेद है। यद्यपि इस समस्या को अभी आंशिक रूप में ही दूर कर पाना संभव हो सका है, परन्तु हमें विश्वास है कि शीघ्र ही इसे पूर्ण रूप से दूर कर लिया जाएगा और “साहित्य सृजन” निरंतर पोस्ट की जा सकेगी। प्रस्तुत अंक में “मेरी बात” के अन्तर्गत वरिष्ठ कथाकार ‘अपनी बात’ कह रहे हैंसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-44688911250855923752009-05-11T08:34:00.000-07:002009-05-11T08:44:33.175-07:00कविता“माँ” पर बलराम अग्रवाल की चार कविताएं(‘माँ दिवस’ पर विशेष)॥1॥अब सिर्फ देह नहीं रही माँपहले भीसिर्फ देह वह थी ही कब?वह सु-संस्कार थीअब भी हैऔर रहेगी आगे भीवह जुझारूपन थीअब भी हैऔर रहेगी आगे भीसमरांगण मेंसाक्षात विजय थी वहअब भी हैऔर रहेगी आगे भी।वह गई कहीं नहीं,विस्तार पा गई है पितरों जितना।पहले उसकी हथेलियाँ,छूती थीं हमेंऔर हमारी त्वचा कराती थी आभासउस छुअन का,उसकी नजरेंचूमती थीं हमेंऔर हमारी सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-23728821434899473462009-05-11T08:23:00.000-07:002009-05-11T08:34:47.116-07:00लघुकथाएंदो लघुकथाएं – सुरेश शर्माकच्चे धागेपति-पत्नी में मन-मुटाव जब चरमसीमा पर जा पहुँचा तो बात तलाक तक जा पहुँची। तलाक के लिए दोनों राजी-खुशी तैयार थे। किंतु दो वर्षीय बालक पर अपना अधिकार छोड़ने को कतई तैयार नहीं थे।“बालक तो मेरे साथ ही रहेगा।” पति ने आदेश दिया।“नहीं, उसे तो मैं किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकती।” पत्नी ने भी सख़्त रुख अपनाया।काफी बहस के बाद दोनों टस से मस नहीं हो रहे थे। अंत में पति आवेश सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-69861858615671463692009-05-11T08:02:00.000-07:002009-05-11T08:22:59.881-07:00पंजाबी कहानीरखेलजतिंदर सिंह हांसहिंदी अनुवाद : सुभाष नीरवचेयरमैन : सरपंचनी कुर्सी पर बैठी सरपंच बनने की सज़ा भुगत रही है। हालांकि बैठी वह थाने में है, पर मन उसका घर में भटक रहा है। घर में चूल्हा ठंडा पड़ा होगा। बच्चे और गुलगुलजारा भूखे-प्यासे होंगे। गुलगुलजारा तो जल भुनकर कोयला हो गया होगा। उसकी व्हील-चेयर इधर-उधर घूम रही होगी, मानो साले को मिर्चें लगी हों। जल भुन तो तभी गया होगा जब उसे पता चला होगा कि सरपंचनीसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-79004404835374208262009-05-11T07:54:00.000-07:002009-05-11T08:02:38.733-07:00भाषांतरधारावाहिक रूसी उपन्यास(किस्त-7)हाजी मुरादलियो तोलस्तोयहिन्दी अनुवाद : रूपसिंह चंदेल॥ सात ॥ घायल आवदेयेव को छावनी के निकासी द्वार के निकट के अस्पताल में, जो लकड़ी के एक छोटे-से मकान में था, ले जाया गया और जनरल वार्ड के एक खाली बेड पर लिटा दिया गया। वार्ड में चार मरीज थे। एक सन्निपात-ग्रस्त टायफायड का केस था, और दूसरा निस्तेज, ज्वरग्रस्त, धंसी हुई आँखें, सदैव मरोड़ उठने की आशंका से ग्रस्त और सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1081236600216643021.post-33790885303520714072008-10-16T07:00:00.000-07:002008-10-17T10:24:10.426-07:00साहित्य सृजन – सितंबर-अक्तूबर 2008‘मेरी बात’ के अन्तर्गत इस बार प्रस्तुत है - हिंदी की प्रख्यात कथाकार सुधा अरोड़ा द्वारा हिंदी के वरिष्ठ लेखक और ‘हंस’ के सम्पादक राजेन्द्र यादव के नाम लिखा गया एक खुला पत्र जो हिंदी कथा मासिक ‘कथादेश’ के अगस्त 2008 अंक में ‘औरत की दुनिया’ स्तंभ के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ है। इस पत्र को सुधा जी ने ‘साहित्य सृजन’ में विशेष रूप से पुनर्प्रकाशन के लिए प्रेषित किया है। अपने इस पत्र के साथ उन्होंने सुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com13