गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

कविता

नमिता राकेश की कविताएं


भरी भीड़ में

भरी भीड़ में
कोई मिल जाए
जो तुम सा
तो बहुत है
इक उम्र जीने के लिए
वरना लोग
इक उम्र गुजार देते हैं
तुम जैसे नगीने के लिए।

आईना

बहुत कोशिश के बाद भी
जज्बात
छिपाए नहीं छिपते
या रब !
मेरे चेहरे को
आईना क्यों बनाया ?


माना कि तुम बादल हो

माना कि तुम बादल हो
बरसना चाहते हो
लेकिन यह मत भूलो
मैं नदी हूँ
बहाना जानती हूँ
कभी चंचल तो कभी ठहरी हुई
चट्टानों से अठखेलियाँ करती हुई
चली जाती हूँ अपनी ही धुन में
कभी मैदान तो कभी सघन वन में
यह तालाबों का पानी
यह झरनों की रवानी
जब मुझसे आकर मिल गई
मेरा ही पानी बन गई
मुझे बादलों की नहीं ख़्वाहिश है
मुझे तो सागर की तलाश है
तुम बादल हो
मंडराते रहो
मैं नदी हूँ
बहती रहूँगी।


अहसास

तुम भले ही ना रहो कहीं
एक अहसास की गंध ने
बांध रखा है
समूचे वातावरण को
ऐसे क्षण नहीं चाहती
पढ़ना
मौन की भाषा
और
दोहराना
संयम की व्याकरण को
आदमी
दृष्टि की व्यापकता से
होता है बड़ा
और छोटा हो जाता है
एक सी परिधियों में।


सागर बताओ

सागर बताओ
उत्तर दे सकोगे
कैसा लगता है तुम्हें
नदी का समपर्ण
नदी
जो अर्पित हो गई
तुम्हारे लिए
खो दिया
अपना अस्तित्व भी
तुममें समाकर
ओ असीम नील
कुछ तो बोलो
कैसा लगता है तुम्हें
लहरों का कंपकंपाता स्पन्दन
पानी का थरथराता स्पर्श
फिर भी
इतना कुछ पाकर
और की चाह में
सागर हो कर भी
लांघ जाते हो
अपने तट की सीमा
बताओ सागर
क्यों करते हो ऐसा।
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शिक्षा : अंग्रेजी तथा इतिहास में एम.ए., बी.एड. तथा पत्रकारिता में स्नात्कोत्तर डिप्लोमा।

प्रकाशित कृतियाँ : क्षितिज की दहलीज पर(1988), मेरी हिन्दी मेरी शान(2000), काव्य गरिमा(2002), नारी चेतना के स्वर(2003)-सभी संयुक्त काव्य संकलन। “तुम ही कोई नाम दो” कविता संग्रह वर्ष 2004 में प्रकाशित। एक कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य ।

सम्पर्क : 779, सैक्टर-16, फरीदाबाद (हरियाणा)
दूरभाष : 09810280592

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