सोमवार, 11 मई 2009

लघुकथाएं



दो लघुकथाएं – सुरेश शर्मा

कच्चे धागे


पति-पत्नी में मन-मुटाव जब चरमसीमा पर जा पहुँचा तो बात तलाक तक जा पहुँची। तलाक के लिए दोनों राजी-खुशी तैयार थे। किंतु दो वर्षीय बालक पर अपना अधिकार छोड़ने को कतई तैयार नहीं थे।
“बालक तो मेरे साथ ही रहेगा।” पति ने आदेश दिया।
“नहीं, उसे तो मैं किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकती।” पत्नी ने भी सख़्त रुख अपनाया।
काफी बहस के बाद दोनों टस से मस नहीं हो रहे थे। अंत में पति आवेश में आते हुए बोला- “ठीक है, मैं इसके लिए कोर्ट में जाऊँगा।”
“तुम्हारी मर्जी, जाओ कोर्ट। जो बात ढकी हुई है, अच्छा है, ज़माने को भी मालूम पड़ जाए। डी एन ए टैस्ट के बारे में तो तुमने सुना ही होगा।” पत्नी ने अंतिम शस्त्र का उपयोग किया। पति इस आकस्मिक आक्रमण को सहन नहीं कर सका। ऊपर से नीचे तक कांप उठा। भयातुर स्वर में धीमे स्वर में बोला- “ठीक ह, बच्चा मेरे पास रहे या तुम्हारे, क्या फ़र्क पड़ता है।”
उसके जाने के बाद पत्नी दु:खी होते हुए बुदबुदाई, “काश, मुझ पर नहीं तो अपने आप पर ही विश्वास किया होता।”
0

नया मकान

रामलाल जब इस मकान में रहने आया, तभी से माँ का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। काफी इलाज करवाने पर भी माँ की दशा में सुधार नही हो रहा था। डॉक्टरों की फीस तथा दवाइयों के खर्चों तथा बच्चों की पढ़ाई के भारी खर्चों ने उसके सीमित बजट में सेंध लगा दी थी। ऐसे में लोक-लाज के कारण लोगों की सलाह मानकर बार-बार डॉक्टर, अस्पताल, दवाइयाँ बदलते-बदलते रामलाल को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक संकट ने हिला कर रख दिया। उसे कष्ट में देखकर रिश्तेदारों, मित्रों ने सुझाया कि तुम्हारा मकान ही अशुभ है, इसे बदल डालो। मगर एक तो वह ऑफिस के नज़दीक होने से, दूसरा बड़ा कारण कि इतने कम किराये पर नया मकान कहाँ मिलेगा, यही सोचकर कुछ समय तक वह लोगों की राय को अनसुनी करता रहा। लेकिन जब पानी सिर से ऊपर आ गया तब रामलाल ने आख़िर दूसरा मकान खोज ही लिया। दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है। पहले पंडितों की राय ली गई। जब पंडितों ने मकान शुभ-फलदायी बताया तो वह उसमें रहने आ गया।
अभी एक माह भी नहीं हुआ था कि एक दिन माँ की तबीयत ऐसी बिगड़ी कि आख़िर वह चल बसी। अर्थी को कंधा देते समय रामलाल के दिमाग में विचार कौंधा – पंडित ने ठीक ही कहा था कि नया मकान शुभ-फलदायी रहेगा।
00
सुरेश शर्मा
6 मई 1938, इन्दौर(मध्य प्रदेश)
कृतियाँ : छोटे लोग, शोभा, थके पाँव(सभी कहानी संग्रह)। 40 से अधिक लघुकथा संकलनों में लघुकथाएं संकलित। ‘कहानी और कहानी’ वार्षिकी, ‘समान्तर’, ‘क्षतिज’, ‘संयोग –साहित्य’ के लिए संपादकीय सहयोग। मालवा अंचल के कथाकारों की चुनिंदा लघुकथाओं पर आधारित लघुकथा संकलन “काली माटी” का संपादन।
सम्मान : लघुकथा लेखन के लिए कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
सम्पर्क : 235, क्लर्क कालोनी, इन्दौर-452011
दूरभाष : 0731-2553260/09926080810

2 टिप्‍पणियां:

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

सुरेश शर्मा की लघुकथाएं भी ध्यान आकर्षित करती हैं. इस बार का साहित्य सृजन पहले की ही तरह बहुत अच्छा बन पड़ा है.

तुम्हे बधाई सुभाष,

चन्देल

प्रदीप कांत ने कहा…

ध्यान आकर्षित करती लघुकथाएं