बुधवार, 18 जून 2008

साहित्य सृजन –जून 2008



मेरी बात
सुभाष नीरव


हिंदी में नित नए ब्लाग्स देखने को मिल रहे हैं। नेट की थोड़ी-सी जानकारी रखनेवाला हर व्यक्ति अपना ब्लाग बना रहा है। इस उत्साह का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन इनमें से अधिकांश ब्लाग्स ‘विज़न’ और सार्थक उद्देश्य के अभाव में ब्लाग की दुनिया में अपनी पुख़्ता पहचान नहीं बना पा रहे हैं। अधिकांश ब्लाग्स पुराने ब्लाग्स की लीक पर होते हैं और उनमें नया कुछ देखने को नहीं मिलता। व्यूअर्स में ऐसे ब्लागों को एक बार क्लिक करने के बाद दुबारा क्लिक करने की इच्छा नहीं होती। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ब्लाग्स की दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करानेवाले सभी ब्लाग्स ऐसे ही होते हैं। साहित्य, कला, संगीत और पत्रकारिता के क्षेत्र के अलावा अब नए विषय क्षेत्रों में भी ब्लाग्स अपनी दस्तक देने लगे हैं। अध्यापकों, डाक्टरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, भाषाविदों, अर्थशास्त्रियों का अपने-अपने विषय को लेकर ब्लाग की दुनिया में आना एक सुखद अहसास दिलाता है। नि:संदेह इनके विषय ही नए नहीं हैं, इनके पीछे ब्लार्ग्स की एक स्पष्ट दृष्टि भी है।
इन दिनों ‘वेब’ और ‘ब्लाग’ की दुनिया में आडियो प्रस्तुतियों की भी बड़ी शिद्दत से ज़रूरत महसूस की जा रही है। पिछले दिनों डेनमार्क की एक वेब साइट “रेडियो सबरंग” पर संयोग से जाने का अवसर मिला। इस आडियो साइट का संचालन डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला और यू के निवासी प्राण शर्मा कर रहे हैं। “सुर संगीत”, “कलामे शायर”, “सुनो कहानी” और “भूले बिसरे गीत” में बंटी इस आडियो वेब साइट को 27 देशों में सुना और सराहा जा रहा है। यहाँ आप “सुर संगीत” के अन्तर्गत निदा फ़ाजली, ऊषा राजे सक्सेना, तेजेन्द्र शर्मा, पूर्णिमा वर्मन, दीप्ति मिश्रा की ग़ज़लों और गीतों को जगजीत सिंह, गुलाम अली, मिथिलेश तिवारी, मित्तल और अर्पण की मधुर आवाज़ों में लुफ़्त उठा सकते हैं, “कलामे शायर” के अन्तर्गत आप हिंदी-उर्दू के मशहूर शायरों-कवियों जैसे नीरज, कुअंर बेचैन, लता हया, राजेश रेड्डी, डा0कीर्ति काले, हस्तीमल हस्ती, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, अंजना संधीर, ओम प्रकाश यति और ममता किरण आदि के कलामों को उन्हीं के स्वर में सुन सकते हैं। इस साइट पर कहानी विधा को भी तरज़ीह दी गई है। कुछेक बरस पहले हिंदी-उर्दू के प्रमुख कहानीकारों की चुनिन्दा कहानियों के कैसेट्स तैयार करने का बीड़ा हिंदी लेखिका मणिका मोहनी ने उठाया था जिनमें मंटो, कृश्नचंदर, कमलेश्वर आदि की कहानियों के आडियो कैसेट्स तैयार किए गए थे,परन्तु यह प्रयोग सफल न हो सका। रेडियो-सबरंग में “सुनो कहानी” से अन्तर्गत अब तक इला प्रसाद, एस आर हरनोट और वीना उदित की कहानियाँ उन्हीं की ज़ुबानी सुनी जा सकती हैं। भविष्य में उम्मीद की जा सकती है कि इसमें हिंदी-उर्दू के नए-पुराने कहानीकार भी जुड़ेंगे। साहित्यिक रचनाओं को सुनने का शौक रखने वाले श्रोता “रेडियो सबरंग” के इस प्रयास नि:संदेह पसंद कर रहे हैं। आप भी इस साइट पर यहाँ क्लिक करके जा सकते हैं।

ब्लाग की दुनिया में भी अभी हाल ही में इस महत्वपूर्ण कार्य की एक अनौखी और लीक से हटकर शुरूआत हुई है। “आर्ट आफ़ रीडिंग” नाम का यह आडिओ ब्लाग मुनीश, इरफ़ान और विकास कुमार के साझे प्रयासों का ही प्रतिफल है। “आर्ट आफ़ रीडिंग” पूरी तरह सुनने-गुनने का ब्लाग है। यहाँ त्रिलोचन की ग़ज़ल है, रघुवीर सहाय की कविता ‘एक दिन आता है’ और ‘किताब पढ़कर रोना’, विनोद कुमार शुक्ल की कविता ‘जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे’ और ‘बंदर चढ़ा पेड़ पर’, राजेश जोशी की कविता ‘पत्ता तुलसी का’, मंगलेश डबराल की कविता ‘केशव अनुरागी’, आलोक धन्वा की कविता ‘गोली दागो पोस्टर’ और गोरखपांडे की कविता ‘बंद खिड़कियों से टकराकर’ का दमदार और प्रभावशाली आवाजों में आप आस्वाद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त, भगवती चरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानी ‘दो बांके’ और ‘इंस्टालमेंट’, सियारामशरण गुप्त की कहानी ‘काकी’, मंटो की कहानी ‘बू’ और ‘धुआँ’, रामलाल का अफ़साना ‘अंधेरे से अंधेरे की तरफ’, उदय प्रकाश की कहानी ‘दरियाई घोड़ा’, उर्दू के मशहूर लेखक इब्ने इशां की किताब ‘उर्दू की आख़िरी किताब’ के कुछ हिस्से और श्रीलाल शुक्ल के बहुचर्चित उपन्यास ‘राग दरबारी’ के अंश की किस्सागोई अंदाज में प्रभावकारी प्रस्तुतियाँ सुन आप मुग्ध हो जाएंगे। इन समस्त साहित्यिक रचनाओं में जान फूंकने का श्रेय जाता है - मुनीश, इरफ़ान, अतुल आर्य, अर्पणा घोषाल, राखी, अश्विनी वालिया और पूनम श्रीवास्तव को जिन्होंने अपनी दमदार और प्रभावशाली आवाज़ में बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतियाँ की हैं।
इस आडियो ब्लाग में एक नया फ़ीचर भी अभी हाल में ही जोड़ा गया है। नाम है- संडे स्पेशल। यह ब्लागरों के लिए एक महत्वपूर्ण फ़ीचर है। इसके अन्तर्गत हर रविवार को किसी भी ब्लाग की एक अच्छी पोस्ट को चुनकर उसे ‘आर्ट आफ़ रीडिंग’ में पाडकास्ट की शक्ल में ध्वन्यात्मक प्रस्तुति की जाती है। अभी हाल ही में सामने आए एक नये ब्लाग “मातील्दा” में ‘शायदा’ की कलात्मकता और काव्यात्मकता से भरपूर खूबसूरत पोस्ट “एक घर है जो हवा में तैरता है” को गत संडे इस फ़ीचर के अन्तर्गत इरफ़ान ने अपनी दमदार आवाज़ में प्रस्तुत करके और अधिक प्रभावकारी बना दिया है।
नि:संदेह आडियो फ़ाइलों का यह अनौखा और नया ब्लाग साहित्य और छपे हुए शब्दों को ज्यादा दूर तक पहुँचाने की क्षमता रखता है। इस आडियो ब्लाग पर साहित्यिक रचनाओं की सुन्दर ध्वन्यात्मक प्रस्तुतिओं का आनन्द उठाने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं।

(‘मेरी बात’ के अन्तर्गत आप भी ऐसे किसी नए ब्लाग जो आपको सार्थक और उद्देश्यपरक लगता है, पर अपनी टिप्पणी ‘साहित्य-सृजन’ को भेज सकते हैं)

कहानी



करोड़पति
सूरज प्रकाश


इस समय भी वह लिफ्ट के पास खड़ा इशारे से किसी न किसी को अपनी तरफ बुला रहा होगा या फिर कैंटीन में बैठा अपनी ताजा रचना जोर - जोर से पढ़ रहा होगा। जिसने भी उससे आंख मिलायी, उसी की तरफ उंगली से इशारा करके अपनी तरफ बुलायेगा और भर्राई हुई आवाज़ में कहेगा, '' मैं आपको एक शब्द दूंगा। आप उसका मतलब किताबों में ढूंढना। किसी पढ़े लिखे आदमी से पूछना। मैं आपसे सच कहता हूं, उस शब्द से यह ऑफिस, यह शहर, यह दुनिया सब बदल जायेंगे, बेहतर हो जायेंगे। आप मुझे मिलना। अगर आपके पास वक्त न हो।'' यहां आते - आते उसकी सांस बुरी तरह फूल चुकी होगी और वह हांफने लगेगा। वहीं बैठ जायेगा। सांस ठीक होते ही फिर से उसका यह रिकॉर्ड चालू हो जायेगा। सामने कोई हो, न हो। तब तक बोलता रहेगा जब तक दरबान उसे खदेड क़र बाहर न कर दे, या भीतर न धकेल दे।
यह करोडपति है। असली नाम पुरुषोत्तम लाल। चपरासी है। आज कल सनक गया है। कभी खूब पैसे वाल हुआ करता था। खेती - बाड़ी थी। दो - तीन घर थे। शहर के कई चौराहों पर पान के खोखे थे। आजकल खाने तक को मोहताज है। अपने अच्छे दिनों में उसने सबकी मदद की। बेरोजगार रिश्तेदारों को काम धन्धे से लगाया। इसी चक्कर में सब कुछ लुटता चला गया। कुछ रिश्तेदारों ने लूटा और कुछ ऑफिस के साथियों ने निचोड़ा। अपने पैसों को वसूलने के लिये करोड़पति सबके आगे गिड़ग़िडाता फिरा। नतीजा यह हुआ कि वह सनक गया। बहकी - बहकी बातें करने लगा। जब पी लेता है तो और भी बुरी हालत हो जाती है। कभी गाने लगता है तो कभी जोर - जोर से बोलने लगता है।
भगवान जाने कितना सच है या न जाने लोगों की उडाई हुई है। एक दिन इसी सनक के चलते एक दिन ऑफिस के बाद घर जाते समय एक थैले में ढेर सारी चीजें, पेपरवेट, पंचिंग मशीन, कागज़, पैन - पैन्सिल जो भी मेजों पर पड़ा नजर आया, थैले में ठूंस लिया। शायद दिन में किसी से कहा - सुनी हो गयी होगी। उसी को जोर - जोर से कोसता हुआ बाहर निकला तो दरबान ने यूं ही पूछ लिया - थैले में क्या ले जा रहे हो करोड़पति? तो उसी से उलझ गया। ऊंच - नीच बोलने लगा। दरबान ने उसे वहीं रोक लिया और रिपोर्ट कर दी। करोड़पति सामान चोरी करके ले जा रहा है।
करोड़पति पकडा गया। सुरक्षा अधिकारी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि उसके खिलाफ मामला न बने, बेचारा पहले ही दुनिया भर का सताया हुआ है। लेकिन पता चला कि करोड़पति अव्वल तो पिये हुए है और दूसरे, ढंग से बात करने को तैयार नहीं है। कभी कहे कि ये सामान फलां साहब ने अपने घर पर मंगवाया है, तो कभी कहे कि - वह ऑफिस की नौकरी छोड़ रहा है। अब इसी सामान की दुकान खोलेगा। उसने अपने आप को यह कह कर और भी फंसा लिया कि - यह तो कुछ भी नहीं है, वह तो अरसे से थैले भर - भर कर सामान ले जाता रहा है।
उसके खिलाफ मामला बना और उसे सस्पैण्ड कर दिया गया। तबसे और सनक गया है।मैले कुचैले कपडे, एकदम लाल आंखें, नंगे पैर, हाथ में पांच सात कागज़, दाढ़ी बढ़ी हुई। तब से रोज सुबह लिफ्ट के पास खड़ा सबको पुकारता रहता है। कोई उसके सामने नहीं पड़ना चाहता। वे तो बिलकुल भी नहीं जिन्होंने उसकी सारी पूंजी लूट कर उसकी यह हालत बना दी है।
उसकी सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि वह घर और बाहर दोनों ही जगह से फालतू हो गया है। घरवालों की बला से वह कल मरता है तो आज मरे। कम से कम उसकी जगह परिवार में किसी को तो नौकरी मिलेगी। उनके लिये तो वह अब बोझ ही है। ऑफिस में उसकी परवाह किसे है? वहां वह अकेला पागल ही तो नहीं। एक से एक पागल भरे पड़े हैं। कुछ हैं और कुछ बने हुए हैं। जो नहीं भी हैं वो सबको पागल बनाये हुए हैं।
कोई भी करोड़पति से बात नहीं करना चाहता। उसे देखते ही सब दायें - बायें होने लगते हैं। दुर - दुर करते हैं। कौन इस पागल के मुंह लगे। अगर कोई धैर्यपूर्वक उसकी बात सुने, उससे सहानुभूति जताये तो शायद उसके सीने का बोझ कुछ तो उतरे। लेकिन किसे फुर्सत?
जब उसकी इन्‍क्वायरी के लिये तारीख तय हुई तो यूनियन से उसका डिफेन्स तय करने के लिये कहा गया। यूनियन को भला ऐसे कंगले में क्या दिलचस्पी हो सकती थी। उन्होंने भी टालमटोल करना शुरु कर दिया। जब करोड़पति को उनके रुख का पता चला तो वह वहां भी गाली - गलौज कर आया - मुझे आपकी मदद की कोई जरूरत नहीं। मैं अपना केस खुद लड़ लूंगा। गुस्से में आकर उसने यूनियन से ही इस्तीफा दे दिया - चूंकि पुरषोत्तम लाल यूनियन का मेम्बर नहीं है, अत: यूनियन की तरफ से डिफेन्स उपलब्ध कराना संभव नहीं है।

मजबूरन ऑफिस ने ही उसके लिये डिफेन्स जुटाया और केस आगे बढ़ाना शुरु किया। लेकिन करोड़पति अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने को तैयार हो तो कोई क्या करे! कभी इनक्वायरी में नहीं आयेगा। आयेगा भी तो बात करने लायक हालत में नहीं रहेगा। अगर सारी स्थितियां उसके पक्ष में हों, वह आये, बात करने लायक हो, तो भी वह वहां कुछ ऐसा उलटा सीधा बोल आयेगा कि बात आगे बढ़ने के बजाय पीछे चली जाये - मैं एक - एक को देख लूंगा। सब मेरे दुश्मन हैं। मेरी बात ध्यान से नोट कर लो। मैं बाद में फिर आऊंगा। इस तरह की ऊटपटांग बातें करके लौट आयेगा।
इसी तरह ही चल रहा है करोड़पति। पता नहीं, खाना कहां से खाता है, पीना कहां से जुटाता है। इन दिनों उसे आधी पगार मिलती है जो पगार वाले दिन उसकी बीवी ले जाती है। कम से कम बच्चे तो भूखे न मरें। इस पागल का क्या!
संस्थान ने उसकी हालत पर तरस खा कर फिर से बहाल कर दिया है, अलबत्ता उसकी चार वेतन वृध्दियां कम कर दी हैं। उसे नौकरी में वापिस लिये जाने की एक वजह यह भी रही कि उसका ढंग से इलाज हो सके और एक परिवार बेवक्त उजड़ने से बच जाये। लेकिन हुआ इसका उलटा ही है। करोड़पति की हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गयी है। काम करने लायक तो वह पहले कभी नहीं था, इधर उसने दो तीन नये रोग पाल लिये हैं। आजकल वह बात - बात पर इस्तीफा दे देता है। कभी उसे गाने का शौक रहा होगा, कुछेक फिल्मी गीत याद भी रहे होंगे। उन्हीं में से कुछ शब्द आगे पीछे करके ले आता है। टाइपिस्ट सीट पर बैठे भी नहीं होते हैं कि सिर पर आ धमकता है - '' इसे टाइप कर दो। अभी किशोर कुमार इसे गाने वाले हैं। वे स्टूडियो में इसकी राह देख रहे हैं। वे नहीं गायेंगे तो मैं खुद गाऊंगा।'' और वह वहीं शुरु हो जाता है। भर्राये हुए गले से करोड़पति गा रहा होता है और सब खी - खी हंस रहे होते हैं। पिछले हफ्ते उसे सस्‍पैन्शन की अवधि की बकाया रकम मिली है। उसी पैसे से पी जा रही दारू का नतीजा है यह।
अगर टाइपिस्ट यह तुकबन्दी टाइप करने से मना कर दे, कैन्टीन से चाय मिलने में तीन मिनट से ज्यादा लग जायें, कोई बिल एक ही दिन में पास न किया जाय तो वह तुरन्त इस्तीफा दे देता है। बेशक अगले दिन उसके बारे में भूल जाये और किसी और बात पर कोई नया इस्तीफा दे दे। कई बार उसके पांच - सात इस्तीफे जमा हो जाते हैं जिन्हें डायरी क्लर्क एक किनारे जमा करती रहती है। जहां तक उसके इलाज का सवाल है, करोड़पति को डॉक्टर के पास ले जाया जाता है, उसकी तकलीफ बतायी जाती है, दवा भी मिलती है, लेकिन खाने के लिये तो करोड़पति को एक और जनम लेना पडेग़ा।
करोड़पति लापता है। पिछले कई दिनों से न घर पहुंचा है और न ऑफिस ही। वैसे तो पहले भी वह कई बार दो - दो, चार - चार दिनों के लिये गायब हो जाता था, लेकिन जल्द ही मैले - कुचैले कपड़ों में लौट आता था। इस बार उसे गायब हुए महीना भर होने को आया है। उसका कहीं पता नहीं चल पाया है। इस बार पगार वाले दिन उसकी बीवी उसे ढूंढते हुए ऑफिस आई, तभी सबको याद आया कि कई दिन से करोड़पति को नहीं देखा। कई दिन से वह घर भी नहीं पहुंचा था। वैसे तो कभी भी किसी ने उसकी परवाह नहीं की थी, न घर पर न दफ्तर में। अब अचानक सबको करोड़पति याद आ गया था। बीवी को पगार वाले दिन उसकी याद आई थी, बल्कि जरूरत पड़ी थी कि आधी - अधूरी जितनी भी पगार है, करोड़पति से हस्ताक्षर करवा कर ले जाये। अगली पगार तक करोड़पति अपने दिन कैसे काटता था, क्या करता था यह उसकी सिरदर्दी नहीं थी। बेशक कर्जे वसूलने वाले भी पगार के आस - पास मंडराते रहते थे कि उसके हाथ में लिफाफा आते ही अपना हिस्सा छीन लें। लेकिन उसकी बीवी की मौजूदगी में कुछ भी वसूल नहीं कर पाते थे। अलबत्ता बीवी को ही डरा धमका कर सौ - पचास निकलवा पायें यही बहुत होता था। वे भी अब परेशान दिखने लगे थे। करोड़पति नहीं है अब क्या वसूलें और किससे वसूलें।
अब अचानक सबको याद आने लगा है कि - किसने करोड़पति को आखिरी बार कहां देखा था! किसी को हफ्ता भर पहले स्टेशन पर पूरी - भाजी खाते नजर आया था तो किसी ने उसे सब्जी मण्डी में मैले कुचैले कपड़े पहने भटकते देखा था। किसी का ख्याल था कि वह या बिलकुल वैसा ही एक आदमी थैला लिये शहर से बाहर जाने वाली एक बस में चढ़ रहा था। जितने भी लोग थे करोड़पति के बारे में अपने कयास भिड़ा रहे थे, कोई भी यकीन के साथ बताने को तैयार नहीं था। बल्कि कुछ लोग तो इतनी दूर की कौड़ी ख़ोज कर लाये थे कि तय करना मुश्किल था कि किसके कयास में ज्यादा वजन है। एक चपरासी को तो पूरा यकीन था कि पिछले हफ्ते रेलवे पुल के पास भिखारी जैसे किसी आदमी की जो लाश मिली थी, हो न हो वह करोड़पति की ही रही होगी। अलबत्ता यह खबर देने वाले के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि अगर वह करोड़पति की ही लाश थी तो उसने पहले खबर क्यों नहीं दी? ये और इस तरह की कई अफवाहें अचानक हवा में उठीं और गायब भी हो गयीं।
ऑफिस में तो उसकी मौजूदगी - गैर मौजूदगी महसूस ही नहीं की गई थी, लेकिन उसकी बीवी वाकई चिन्ता में पड़ गयी है। उसकी चिन्ता करोड़पति की पगार को लेकर है, जो उसे बिना करोड़पति के हस्ताक्षर के नहीं मिल सकती है। उसने ऑफिस से करोड़पति की गैर हाजिरी का प्रमाणपत्र ले लिया है और थाने में उसके गुमशुदा होने के बारे में रिपोर्ट लिखवा दी है। किसी तरह रोते - पीटते अपनी गरीबी की दुहाई देते हुए उसके गुमशुदा होने का प्रसारण भी दूरदर्शन पर करवा दिया है। लेकिन इस बीच न करोड़पति लौटा है न उसके बारे में कोई खबर ही मिली है।
तीन महीने तक इंतजार करने के बाद ऑफिस ने हर तरह की कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद संस्थान का मकान खाली करने का आदेश उसकी बीवी को दे दिया है। उसकी बीवी की सारी कोशिशों और अनुरोधों के बावजूद ऑफिस से करोड़पति का एक पैसा भी उसे नहीं मिल पाया है। इस बीच उसने करोड़पति की जगह नौकरी के लिये भी एप्लाई कर दिया है जिसे ऑफिस ने ठण्डे बस्ते में डाल दिया है।
करोड़पति की जगह नौकरी पाने के लिये उसे या तो करोड़पति का मृत्यु प्रमाणपत्र लाना पड़ेगा या उसके गुमशुदा होने की तारीख से कम से कम सात साल तक इंतजार करना पड्रेगा।
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14 मार्च 1952 को देहरादून (उत्तर प्रदेश - अब उत्तरांचल) में जन्में वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश ने पत्रकारिता में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की. १९८७ से नियमित लेखन . अब तक अनेक पुस्तकें, जिनमें -- अधूरी तस्वीर, छूटे हुए लोग तथा साचा सर्नामे (गुजराती में) (कहानी संग्रह), हादसों के बीच, और देश बिराना (उपन्यास), जारा संभल के चलो (व्यंग्य संग्रह) आदि प्रमुख हैं. अनुवादक के रूप में सूरज प्रकाश ने अपनी एक अलग पहचान बनायी है और अंग्रेजी तथा गुजराती से अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों के अनुवाद किये हैं, जिनमें प्रमुख हैं : एनिमल फार्म (जॉर्ज आर्वेल), क्रॉनिकल ऑफ ए डैथ फोरटोल्ड(गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़), ऎन फ्रैंक की डायरी (ऎन फ्रैंक), चार्ल्स चैप्लिन की आत्मकथा (चार्ल्स चैप्लिन), तथा अनेक अनेक कालजयी कहानियां. गुजराती लेखक - दिनकर जोशी और विनोद भट्ट की रचनाओं के अनुवाद के साथ बम्बई-1(बम्बई पर आधारित कहानियों का विशिष्ट संग्रह) और 'कथा लन्दन (इंगलैंड में लिखी जा रही हिन्दी कहानियों का संग्रह) के सम्पादन.

पुरस्कार : गुजरात साहित्य अकादमी का पहला कथा सम्मान(1994) और महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अक्कदमी का प्रेमचन्द कथा सम्मान(2000) .
सम्प्रति : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत.
सम्पर्क : एच-1/1001, रिद्धि गार्डन, फिल्म सिटी रोड, मालाड पूर्व,
मुम्बई-400097
मोबाईल नं० – 09860094402

कविताएं- डा0 हरि जोशी

सोना और काम

सिर्फ़ काम काम अथवा सोना सोना,
दोनों का अर्थ होता अपना जीवन खोना।
सोना और काम पर दोनों ज़रूरी ,
बिना इनके ज़िन्दगी सचमुच अधूरी ।

पहले और बाद में

उन दिनों मैं बहुत अधिक सोता था,
अपने सभी मित्रों के और निकट होता था ।
आजकल थोड़ा-सा ही जागता हूं ,
सारे निकटस्थों से दूर-दूर भागता हूं ।


कितने पशु मेरे अंदर

मेरी दो वर्षीय नातिन,
मेरे पेट और छाती पर,
आगे पीछे कूदकर,
चिल्लाती बार-बार ‘‘ घोड़ा ओ घोड़ा”
‘‘अच्छा ” वह भी जानती है,
मैं भी रहा हूँ कभी, रेस का घोड़ा,
जीवन की दौड़ में, मेरे कई सहधावक,
मुझसे तेज़ भागे,
कुछ कछुए सिद्ध हुए,
जिनसे तो मैं ही निकल भगा आगे ।

कभी-कभी सोचता हूं,
डर में या आदर में, कहकर घोड़ा,
योग्यता से अधिक पद दे दिया
उसने थोड़ा।

वास्तव में मैं घोड़ा नहीं गधा हूं,
न सिर्फ़ भांति-भांति के बोझों से लदा,
कई अवांछित मान्यताओं से भी बंधा हूं ।


घोड़े और गधे का अंतर वह जानती नहीं,
चेहरे को देखकर समझी शायद थोड़ा,
सवार हो चिल्ला पड़ी ‘‘ चल घोड़ा, चल घोड़ा”।

सर्दी के मौसम में,जब लगाता बंदर टोपी,
चिल्लाती दूर से बंदर ओ बंदर,
तोतली भाषा में समझा दिया उसने मुझे,
बैठे हैं एक साथ कई पशु मेरे अंदर।
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लघुकथाएं- रणीराम गढ़वाली

शान्ति

सुरेश प्रसाद अपने पिता की तेहरवीं मना रहा था। तेहरवीं पर बुलाए गए ब्राह्मणों को जब वे कम्बल व धोती कुर्ता बांटने के लिए ले जाने लगे तो उनके बेटे रवि ने कहा, “पापा जी, आप कम्बल क्यों दे रहे हैं ?”
“बेटा दान करने से तुम्हारे दादा जी की आत्मा को शान्ति मिलेगी।”
“लेकिन पापा जी दादा जी की आत्मा को तो शान्ति मिल चुकी है।”
“तुम्हें कैसे पता ?”
“पापा जी, आपको याद है ना, जब दादा जी ने एक बार रात में आपसे कम्बल ओढ़ने के लए मांगा था, तब मम्मी ने कहा था कि कम्बल पता नहीं कहाँ रखा है, सुबह ढूँढ़ूगी। उस रात दादा जी रोने लगे थे। तब उन्होंने रोते हुए कहा था– मौत भी निष्ठुर हो गई है। आती ही नहीं। आ जाती तो मेरी आत्मा को शान्ति मिल जाती। दादा जी मर गए हैं। इसलिए उनकी आत्मा को शान्ति मिल गई है।”
अपने बेटे की बात सुनकर सुरेश के हाथों से कम्बल छूटकर जमीन पर फैल चुके थे।

अस्थियाँ

रात को सोते वक्त तीनों भाइयों में बहस छिड़ गई थी कि माँ की अस्थियों को लेकर कौन हरिद्वार जाएगा ? सबसे बड़े भाई ने अपने से छोटे भाई से कहा, “रामदुलारे, तू कल माँ की अस्थियाँ लेकर हरिद्वार चला जा।”
“आप तो जानते ही हैं भाई कि मेरी प्राइवेट नौकरी है। मैं चला गया तो नौकरी भी हाथ से जाएगी।”
“अच्छा छोटे, तू ही कल माँ की अस्थियाँ हरिद्वार ले जाकर गंगा में बहा आना, माँ की आत्मा को शान्ति मिल जाएगी।” बड़े भाई ने सबसे छोटे भाई से कहा।
“गंगा में माँ की अस्थियाँ बहाने से क्या माँ की आत्मा को शान्ति मिल जाएगी ? ज़िन्दगी भर तो माँ रोती ही रही थी।”
“यह माँ की इच्छा थी छोटे।”
स्वर्ग-नरक किसने देखा है भाई। माँ को मरना था तो मर गई, अब माँ की इन अस्थियों को बहाओ या मत बहाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता।” मंझले ने कहा।
“मंझले भैया ठीक कहते हैं भाई, कल मुझे आई.टी.ओ. जाना है। मैं मटके में रखी माँ की अस्थियों को पुल पर से यमुना नदी में फेंक दूंगा। गंगा न सही तो यमुना ही सही, वैसे भी आजकल गंगा बहुत मैली व प्रदूषित हो गई है।” कहकर छोटे ने करवट बदल ली थी।

लेखक परिचय :

जन्म: जून 1957, ग्राम–घन्डियाल(मटेला), उत्तरांचल।
प्रका्शित पुस्तकें : “खंडहर” और “बुरांस के फूल”(कहानी संग्रह)
“आधा हिस्सा”(लघुकथा संग्रह)
सम्पर्क :आज जै़ड 668/38 ए, गली नं0 18 सी–1, साधनगर,
पालम कालोनी, नई दिल्ली–110045
दूरभाष :0899386568

भाषांतर

धारावाहिक रूसी उपन्यास(किस्त-4)

हाजी मुराद
लियो तोलस्तोय
हिन्दी अनुवाद : रूपसिंह चंदेल

चार
शमील के मुरीदों से बचते हुए हाजी मुराद ने तीन रातें बिना सोये बितायी थीं, और जैसे ही सादो ‘शुभ रात्रि’ कहकर कमरे से बाहर निकला था, वह सो गया था। वह पूरे कपड़े पहने हुए ही, लाल गद्दी के नीचे अपनी कोहनी मोड़कर, जिसे उसके मेजबान ने उसके लिए बिछाया था, सो गया था। एल्दार उसके पीछे पसर गया था। उसकी छाती उसके सफाचट नीले सिर से ऊंची उठी हुई दिख रही थी, जो तकिया से नीचे लुढ़क गया था। उसका ऊपरी होठ नीचे के होठ से हल्का-सा दबा हुआ था, और वे इस प्रकार सिकुड़-फैल रहे थे कि ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई बच्चा चुस्की ले रहा था। हाजी मुराद की भांति वह भी पूरे कपड़ों में, अपनी बेल्ट में पिस्टल और कटार पहने सो गया था। उसके सफेद ट्यूनिक में काली गोलियों की थैलियॉं भरी हुई थीं। अंगीठी में लकड़ियाँ जल रहीं थीं और आले में चिराग टिमटिमा रहा था।
आधी रात के समय दरवाजा चरमराया। हाजी मुराद तुरंत उठ खड़ा हुआ और उसने मजबूती से अपनी पिस्टल पकड़ ली। सादो मिट्टी की फर्श पर दबे पाँव चलते हुए कमरे में प्रविष्ट हुआ।
‘‘तुम क्या चाहते हो ?” हाजी मुराद ने ऐसे पूछा जैसे वह सोया ही नहीं था।
‘‘हमें सोचना चाहिए,” हाजी मुराद के सामने बैठते हुए सादो बोला। ‘‘एक महिला ने छत से आपको घोड़े पर आते हुए देख लिया था,” उसने कहा। “उसने अपने पति को बताया और अब सारा गाँव जान गया है। एक पड़ोसी अभी-अभी अन्दर आया था और उसने मेरी पत्नी को बताया कि बुजुर्ग लोग मस्जिद में एकत्रित हुए हैं और आपको गिरफ्तार करना चाहते हैं।”
‘‘हमें जाना होगा” हाजी मुराद बोला।
‘‘घोड़े तैयार हैं।” सादो ने कहा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।
‘‘एल्दार” हाजी मुराद फुसफुसाया और एल्दार स्वामी की आवाज सुनते ही अपनी टोपी ठीक करता हुआ उछलकर खड़ा हो गया। हाजी मुराद ने हथियार और लबादा पहना, और एल्दार ने भी वैसा ही किया। उन दोनों ने चुपचाप सायबान की ओर से घर छोड़ दिया। काली आँखों वाला लड़का घोड़े ले आया था। सख्त सड़क पर घोड़ों की टापों की खटखटाहट से बगल वाले मकान के दरवाजे से एक सिर बाहर प्रकट हुआ, और एक आदमी लकड़ी के जूतों की खटखट करता पहाड़ी पर बने मस्जिद की ओर दौड़ गया था।
उस समय चाँद नहीं निकला था। काले आकाश में तारे चमक रहे थे। अंधेरे में छतों के बाहरी किनारे और मस्जिद के शिखर और उसकी मीनारों के बुर्ज गाँव के सबसे ऊंचे भाग से भी ऊपर उठे देखे जा सकते थे। मस्जिद से फुसफुसाहट भरी आवाजें सुनी जा सकती थी।
हाजी मुराद ने तेजी से राइफल पकड़ी, तंग रकाब में पैर रखा और कुशलतापूर्वक उछलकर गद्दीदार काठी पर बैठ गया।
‘‘खुदा आपको इनाम दे” अपने मेजबान को संबोधित करते हुए उसने कहा। उसका दाहिना पैर स्वत: दूसरी रकाब पर पहुंच गया और चाबुक के इशारे से उसने लड़के को हटने का इशारा किया। लड़का पीछे हट गया, और घोड़ा गली से मुख्य मार्ग की ओर तेज गति से दौड़ पड़ा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बिना कहे वह जानता था कि उसे क्या करना है। एल्दार पीछे चला और सादो अपने फर कोट में बाहें लहराता और संकरी गली में इधर से उधर छंलागें लगाता उनके पीछे दौड़ने लगा। गली के मुहाने पर एक हिलती-डुलती छाया रास्ता रोकती हुई प्रकट हुई, और फिर दूसरी प्रकटी।
“रुको ! कौन जा रहा है ? रुको,” चीखती हुई एक आवाज आई, और अनेक लोगों ने रास्ता रोक लिया।
रुकने के बजाय हाजी मुराद ने बेल्ट से पिस्तौल निकाली और घोड़े की गति बढ़ाकर सीधे रास्ता रोके दल की ओर बढ़ा । लोग तितर-बितर हो गये और हाजी मुराद सहज पोइयां चाल से सड़क पर उतर गया। एल्दार तेज दुलकी चाल से उसके पीछे चलता रहा। उनके पीछे दो धमाके गूंजे और सनसनाती गोलियाँ दोनों में से किसी को भी स्पर्श न कर बगल से निकल गयीं। हाजी मुराद ने अपनी रफ्तार नहीं बदली। तीन सौ गज आगे जाने के बाद उसने अपने घोड़े को रोका, जो हल्का-सा हांफ रहा था। उसने सुनने का प्रयास किया। सामने और नीचे की ओर उसे तेज बहते पानी की आवाज सुनाई दी। उसके पीछे गाँव में मुर्गे बांग दे रहे थे। इन आवाजों से ऊपर पीछे की ओर से निकट आती हुई घोड़ों की टॉपें और आवाजें उसे सुनाई दीं। हाजी मुराद ने घोड़े को छुआ और उसी गति में चलने लगा।
पीछे आनेवाले घुड़सवार सरपट दौड़ रहे थे और तेजी से हाजी मुराद के निकट आते जा रहे थे। वे लगभग बीस थे। वे ग्रामीण थे जिन्होंने हाजी मुराद को गिरफ्तार करने का निर्णय किया था अथवा शमील के सामने अपनी सफाई देने के लिए वे उसे गिरफ्तार करने का नाटक करना चाहते थे। जब वे इतना निकट आ गये कि अंधेरे में भी दिखाई देने लगे तब हाजी मुराद रुक गया। उसने घोड़े की लगाम ढीली की, बायें हाथ से यंत्रवत राइफल केस खोला और दूसरे हाथ में राइफल पकड़ ली। एल्दार ने भी वैसा ही किया।
‘‘तुम लोग क्या चाहते हो ?” हाजी मुराद चीखा। ‘‘क्या तुम हमें पकड़ना चाहते हो ? तब आगे बढ़ो ।“ उसने अपनी राइफल ऊपर उठायी।
ग्रामीण रुक गये। राइफल हाथ में पकड़े हुए हाजी मुराद ने नदी की ओर उतरना प्रारंभ कर दिया। घुड़सवारों ने दूरी बनाए हुए उसका पीछा किया। जब हाजी मुराद नदी पार करके दूसरी ओर पहुँच गया, घुड़सवार इस प्रकार चीखे जिससे वे जो कहना चाहते थे उसे हाजी मुराद सुन सके। हाजी मुराद ने उत्तर में राइफल से फायर किया और घोड़े को सरपट दौड़ा दिया। जब वह रुका तब न किसी के पीछा करने की आवाज थी, न मुर्गों की बांग, केवल जंगल के मध्य पानी की स्पष्ट कलकल ध्वनि थी और कभी-कभी उल्लू चीख उठता था। यह वही जंगल था जहाँ उसके आदमी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जब वह जंगल में पहुँच गया, हाजी मुराद रुका, गहरी सांसों से फेफड़ों को भरा, सीटी बजायी और इसके बाद उत्तर सुनने के लिए रुका रहा। एक मिनट बाद ही उसे जंगल से उसी प्रकार की सीटी सुनाई दी। हाजी मुराद ने सड़क से मुड़कर जंगल में प्रवेश किया। सौ गज जाने के बाद पेड़ों के तनों के बीच से आग की चमक और उस आग के चारों ओर बैठे लोगों की छायाएं, और साथ ही हल्की रोशनी में अभी भी काठी कसा लड़खड़ाता हुआ एक घोड़ा उसे दिखाई पड़े। आग के पास चार आदमी बैठे थे।
उनमें से एक आदमी तेजी से उठ खड़ा हुआ, हाजी मुराद के पास आया और उसके घोड़े की लगाम और रकाब थाम ली। वह हाजी मुराद का हमशीर (सहोदर) था जो उसके क्वार्टर मास्टर के रूप में काम करता था।
‘‘आग बुझा दो।“ घोड़े से उतरते हुए हाजी मुराद ने कहा। दूसरे लोगों ने आग को छितराना शुरू कर दिया और जलती लकडि़यों को रौदनें लगे।
‘‘तुमने बाटा को देखा है ?” जमीन पर बिछे हुए चादर की ओर बढ़ते हुए हाजी मुराद ने पूछा।
‘‘हाँ, कुछ देर पहले ही वह खान महोमा के साथ गया था।”
‘‘वे लोग किस रास्ते गये ?”
‘‘इस रास्ते।” हाजी मुराद जिस रास्ते से आया था, उसके विपरीत रास्ते की ओर इशारा करते हुए हनेफी ने उत्तर दिया।
‘‘ अच्छा ” हाजी मुराद बोला। उसने अपनी राइफल उतारी और उसे लोड किया। ‘‘हमें सतर्क रहना चाहिए। मेरा पीछा किया जा रहा था,” उसने उस व्यक्ति से कहा जो आग बुझा रहा था।
यह हमज़ालो था, एक चेचेन। हमज़ालो चादर के पास आया, राइफल को उसके खोल में रखा और चुपचाप जंगल में उस खुले स्थान के किनारे की ओर गया जिधर से हाजी मुराद आया था। एल्दार घोड़े से उतरा, उसने हाजी मुराद के घोड़े को पकड़ा और दोनों घोड़ों की लगामें पेड़ से इस प्रकार बांध दीं कि घोड़ों के सिर ऊपर उठे रहें। फिर हमज़ालो की भांति कंधे पर अपनी राइफल लटकाकर वह जंगल के दूसरे किनारे पर जा खड़ा हुआ। आग बुझ चुकी थी। जंगल पहले जैसा अंधकारमय प्रतीत नहीं हो रहा था। तारे यद्यपि क्षीण हो चुके थे तथापि आकाश में दिखाई दे रहे थे।
हाजी मुराद ने तारों पर दृष्टि डाली और यह देखकर कि सप्तर्षि-मण्डल ने आधी दूरी तय कर ली है, उसने अनुमान लगाया कि आधी रात बीत चुकी थी और रात्रि की नमाज का समय हो गया था। उसने हनेफी से जग मांगा, जिसे वह पिट्ठू बैग में लेकर सदैव चलता था। उसने अपनी चादर ली और नदी किनारे गया। जूते उतारकर हाजी मुराद ने जब वु़जू समाप्त कर लिया तब वह चादर तक नंगे पाँव चलकर आया, पिण्डलियों के बल उस पर उकंड़ू बैठा, उंगलियों से कान बंद किये, आँखें मूंदी और पूरब की ओर मुड़कर रिवाज के अनुसार सस्वर नमाज अदा करने लगा।
जब उसने नमाज समाप्त कर ली, वह उस स्थान पर लौट आया जहाँ उसने पिट्ठू बैग छोड़ा था। चादर पर बैठकर उसने घुटनों पर हाथ रखे और सिर झुकाकर सोचने लगा।
हाजी मुराद सदैव अपनी किस्मत पर यकीन करता था। वह जो भी योजना बनाता, कार्य प्रारंभ करने से पहले ही उसकी सफलता के विषय में आश्वस्त हो लेता था… और सब कुछ भलीभांति सम्पन्न भी होता रहा था। उसके सम्पूर्ण तूफानी यौद्धिक जीवन ने, कुछ अपवादों को छोड़कर, यह सिद्ध भी कर दिया था। इसलिए, उसे विश्वास था, कि अब भी वैसा ही होगा। उसने कल्पना की कि वोरोन्त्सोव द्वारा भेजी गयी सेना के सहयोग से वह शमील पर हमला करेगा, उसे पकड़कर अपना इंतकाम लेगा; जार उसे इनामयाफ़्ता करेगा और वह न केवल अवारिया में, बल्कि सम्पूर्ण चेचेन्या में जो उसकी अधीनता स्वीकार कर लेगी, शासन करेगा।
यही सब सोचते हुए वह सो गया और उसने स्वप्न देखा कि ‘हाजी मुराद‘ कहकर गाते और चिल्लाते अपने योद्धाओं के साथ वह शमील पर आक्रमण कर रहा था। उसने उसे और उसकी पत्नियों को कैद कर लिया था और उसकी पत्नियों का रुदन और क्रन्दन सुन रहा था। अचानक वह उठ बैठा ‘अल्लाह’ का आलाप, ‘हाजी मुराद’ का शोर और शमील की पत्नियों का क्रन्दन वास्तव में गीदड़ों की हुहुआहट और उनकी हंसी थी, जिसने उसे जगा दिया था। हाजी मुराद ने सिर ऊपर उठाया, आकाश की ओर देखा, जिस पर पेड़ों के पार पूरब की ओर रोशनी फैल रही थी और कुछ दूर बैठे मुरीद से उसने पूछा कि क्या खान महोमा लौट आया। यह सुनने के बाद कि वह अभी तक नहीं लौटा था, हाजी मुराद ने सिर नीचे झुका लिया और पुन: सोने की कोशिश करने लगा।
वह खान महोमा की बश्शाश ( उत्फुल्ल ) आवाज से जाग गया, जो बाटा के साथ अपने मिशन से वापस लौट आया था। खान महोमा तुरंत हाजी मुराद के बगल में बैठ गया और बताने लगा कि किस प्रकार सैनिक उनसे मिले और उन्हें लेकर प्रिन्स के पास गये, और उसने प्रिन्स से बात की। उसने उसे बताया कि प्रिन्स कितना प्रसन्न थे, और कैसे उन्होंने मिशिको के बाहर शाला जंगल में जहाँ रूसी सैनिक जंगल की सफाई कर रहे थे, सुबह के समय उनसे मिलने का वायदा किया था। बाटा ने अपने साथी को रोका और विस्तार से बताने लगा।
हाजी मुराद ने उनसे पूछा कि रूसियों की ओर जाने के उसके प्रस्ताव पर वोरोन्त्सोव ने उत्तर में ठीक क्या शब्द प्रयोग किये थे। खान महोमा और बाटा ने एक स्वर में उत्तर दिया कि प्रिन्स ने हाजी मुराद का एक मेहमान की तरह इस्तकबाल (स्वागत) करने और अच्छी तरह देखभाल किये जाने का ध्यान रखने का वायदा किया था। हाजी मुराद ने उनसे रास्ता पूछा, और जब खान महोमा ने उसे आश्वस्त किया कि वह अच्छी तरह रास्ता जानता है और वह उसे सीधे वहीं ले जायेगा तब हाजी मुराद ने अपना पर्स निकाला और वायदे के मुताबिक बाटा को तीन रूबल दिए। उसने अपने आदमियों को उसके पिट्ठू बैग से स्वर्ण जटित पिस्तौल, फर की टोपी और पगड़ी बाहर निकाल लाने का आदेश दिया और मुरीदों से कहा कि रूसियों के सामने अच्छा दिखने के लिए वे अपने को साज-संवार लें। जब वे लोग हथियार, काठी, उपकरण और घोड़ों की साफ-सफाई कर रहे थे, तारे फीके पड़ चुके थे, आकाश में पर्याप्त प्रकाश फैल चुका था और सुबह की सुहानी हवा बहने लगी थी।
(क्रमश: जारी…)

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तेजेन्द्र शर्मा का साहित्य ब्रिटेन से हमारा परिचय करवाता है – मोनिका मोहता

"तेजेन्द्र शर्मा ने मित्रता निभाने की कोई सीमाएं नहीं बना रखीं। किसी की भी सहायता करते समय वे कोई हद मुक़र्रर नहीं करते। उनके द्वारा रचे साहित्य की सबसे बड़ी ख़ूबी यही है कि उसके विषय यहां ब्रिटेन की ज़मीन से जुड़े हैं। उनकी कहानियां, कविताएं, ग़ज़लें ब्रिटेन की ज़िन्दगी से हमारा परिचय करवाती हैं।" यह उदगार व्यक्त किये भारतीय उच्चायोग की मन्त्री – संस्कृति एवं नेहरू केन्द्र की निदेशिका श्रीमती मोनिका मोहता ने। अवसर था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम सृजनात्मकता के तीन दशक जिसमें कथाकार, कवि एवं ग़ज़लकार तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गयी।
मोनिका मोहता ने तेजेन्द्र शर्मा को नेहरू केन्द्र का मित्र और उनके अपने परिवार का सदस्य बताते हुए अपने कवि पति मधुप मोहता द्वारा विशेष तौर पर तेजेन्द्र के व्यक्तित्व पर लिखी गयीं चार पंक्तियों के माध्यम से तेजेन्द्र शर्मा का परिचय कुछ यूं दिया – इक दिया तूफ़ान में जलता रहा / इक शजर सेहरा में भी खिलता रहा / वो कहानी की रवानी है ग़ज़ल की गूंज भी / इक कलम का कारवां, चलता रहा।
कार्यक्रम अपने घोषित समय पर शुरू हो गया तो खचाखच भरे हॉल के दर्शकों को हैरानी हुई। वे सोचने लगे कि अब कार्यक्रम समाप्त भी समय पर ही हो जायेगा। किन्तु ऐसा हुआ नहीं। प्रत्येक वक्ता ने अपने निर्धारित समय से बहुत अधिक समय लिया और जम कर तेजेन्द्र के व्यक्तित्व को श्रोताओं के साथ बांटा।
कार्यक्रम की शुरूआत में एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने सभी गण्यमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि उनकी संस्था कथा यू.के. के साथ मिल कर हिन्दी और उर्दू के बीच की दूरियां पाटने के प्रयास कर रही है। वे साहित्य एवं संस्कृति के माध्यम से दो मुल्कों के नागरिकों के दिलों की दूरियों को दूर करने में विश्वास करती हैं। तेजेन्द्र शर्मा को एक चलती फिरती संस्था का नाम देते हुए उन्होंने तेजेन्द्र की दूसरों की सहायता करने की प्रकृति की सराहना की। तेजेन्द्र की कहानियां उन्हें आधुनिक कहानी का सर्वोत्तम उदाहरण लगती हैं।
वेल्स के डा. निखिल कौशिक ने तेजेन्द्र की ग़ज़ल ये घर तुम्हारा है.... (गायिका – मीतल पटेल, संगीत – अर्पण) और साथ ही तेजेन्द्र का एक साक्षात्कार भी पर्दे पर दिखाया। बाद में अपने पॉवर-पाइण्ट प्रेज़ेन्टेशन के माध्यम से डा. कौशिक ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तेजेन्द्र परिवार के मूल्यों के प्रति कटिबद्ध हैं। वे अपने रिश्ते पूरी शिद्दत से निभाते हैं और फिर वसुदैव कुटुम्बकम के आधार पर अपने परिवार का विस्तार भी करते हैं। उन जैसे कई मित्र तेजेन्द्र के विस्तृत परिवार का हिस्सा हैं।
बी.बी.सी हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने तेजेन्द्र पर अपनी बात कुछ यूं कही, "तेजेन्द्र की जिस ख़ूबी का मैं सबसे ज़्यादा क़ायल हूं, वो यह कि वह वन-मैन एन्टरप्राइस हैं। जो भी किया है अकेले दम, सिंगल-हैण्डिड। उनके पीछे कोई गॉडफ़ादर, कोई प्रोमोटर नहीं, कोई गुट नहीं जिसका उन्हें सहारा हो। जब इस मुल्क में आये थे, तो किसी को नहीं जानते थे। सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं था। मगर आज अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान की जो धूम हैं, उसके नाते जो भी लेखक या संपादक भारत से लन्दन आता है, उनसे मिलना चाहता है।"
भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री राकेश दुबे ने तेजेन्द्र शर्मा के साथ अपनी निजी मित्रता की बात करते हुए अपनी विशिष्ट शैली में कहा, "“काला सागर” की गहराई से शुरु कि‍या जो कहानी लेखन का सफ़र तो फि‍र रुके नहीं, अपनी लेखनी की “ढि‍बरी टाइट” करते हुए लि‍खते रहे, नौकरी भी करते रहे, घर भी चलाते रहे । साहि‍त्‍य साधना में ऐसे जुटे कि‍ अपनी “देह की कीमत" न जानी। फि‍र मुम्‍बई के “ईंटों के जंगल” से नि‍कलकर महारानी वि‍क्‍टोरि‍या के देश में आ बसे । बीबीसी पर उनकी धमक सुनाई पड़ी; जीवन की गाड़ी भी धीरे धीरे पटरी पर दौड़ने लगी । लेकि‍न वे शान्‍त कहां बैठने वाले थे; कहने लगे लोगों से कि‍ अपने “पासपोर्ट का रंग” न देखो, जहॉं रह रहे हो वहॉं की बात सुनो, समझो, कहो क्‍योंकि‍ “ये घर तुम्‍हारा है” । तेजेन्‍द्र जी की नज़र भवि‍ष्‍य पर है, कदम ज़मीन पर और सोच गंगा जमुनी संस्‍कृति‍ की पोषक । वे यह दुआ करते रहे हैं कि‍ उनकी रचनाओं के संदेश की “बेघर आंखें” हर रचनाकार की आंखें बन जाएं और परस्‍पर मेल मि‍लाप की भावना से हम साथ साथ आगे बढ़ें।"

बी.बी.सी. रेडियो हिन्दी की वर्तमान अध्यक्षा डा. अचला शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा कि तेजेन्द्र की अच्छाइयों के बारे में इतना कुछ कहा जा चुका है कि वे तेजेन्द्र की किसी कमज़ोरी की तरफ़ इशारा करना चाहेंगी। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तितव के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उनके पत्रकार रूप की चर्चा की। तेजेन्द्र शर्मा के नवीनतम कहानी संग्रह बेघर आंखें का ज़िक्र करते हुए अचला जी का कहना था कि तेजेन्द्र अब एक सधे हुए कथाकार हैं। क़ब्र का मुनाफ़ा, एक बार फिर होली, मुझे मार डाल बेटा, कोख का किराया, पापा की सज़ा आदि कहानियों में वे ब्रिटेन के भारतीय, पाकिस्तानी एव गोरे चरित्रों का बख़ूबी चित्रण करते हैं। तेजेन्द्र एक सशक्त कहानीकार, नाटककार, अभिनेता और पत्रकार होने के साथ साथ एक सफल आयोजक भी हैं जो अपने व्यक्तित्व की सहजता के कारण सभी को अपने साथ ले कर चलने की क्षमता रखते हैं।
उर्दू के मूर्धन्य विद्वान प्रोफ़ेसर अमीन मुग़ल ने तेजेन्द्र के कहानीकार रूप की बहुत गहराई से पड़ताल की, "वह (तेजेन्द्र) आपको दुःखों की दुनिया की सैर करवाता है। सैर, जो दिल्ली के फूल वालों की सैर नहीं है बल्कि एक सफ़र है जहां रास्ते के हर दरीचे (खिड़की) में सलीबें गड़ी हुई हैं, पत्थरों पर चलना पड़ता है और राह में कोई कहकशां (आकाश गंगा) नहीं है।"... "तेजेन्द्र एक पैदायशी कहानी बाज़ है। बड़े रिसान से बात कहना और किरदारों की सोच के धारे के साथ बहना और पढ़ने वालों को बहा ले जाना उसका कमाल है।"
सनराईज़ रेडियो के महानायक रवि शर्मा ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में तेजेन्द्र को एक दाई की संज्ञा दे डाली। उनका कहना था कि तेजेन्द्र स्वयं तो लिखते ही हैं बल्कि जो लोग बिल्कुल भी नहीं लिखते, उन्हें लिखने को प्रेरित भी करते हैं। उन्हें दूसरे का लिखा देख प्रसन्नता महसूस होती है, जलन नहीं।
मशहूर पत्रकार, मंच कलाकार एवं निर्देशक परवेज़ आलम ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानी कैंसर का ड्रामाई अन्दाज़ में पाठ कर श्रोताओं से वाहवाही लूटी। सोनी टेलिविज़न से जुड़ी यासमीन क़ुरैशी ने कार्यक्रम का दक्ष संचालन किया।
तेजेन्द्र शर्मा की ऑडियो बुक (यानि की बोलने वाली किताब) सी.डी. का विमोचन 81 वर्षीय नेत्रहीन हिन्दी प्रेमी श्री मदन लाल खण्डेलवाल ने किया। उनका कहना था कि एम.पी. 3 तरीके से रिकॉर्ड की गयी इन कहानियों को स्वर देने वाले कलाकारों ने कहानियों को जीवन्त बना दिया है। उन्होंने ज़कीया ज़ुबैरी जी को धन्यवाद दिया कि उन जैसे लोगों के लिये कम से कम लन्दन के हिन्दी जगत में किसी ने सोचा तो। उन्होंने कहानियों को ब्रेल पद्धति में प्रकाशित करवाने का सुझाव भी दिया।
कार्यक्रम में शिरक़त कर रहीं हुमा प्राइस ने टिप्पणी की, "जब वक्ताओं ने तेजेन्द्र के विषय में बात करनी शुरू की तो यह साफ़ ज़ाहिर होता जा रहा था कि इस इन्सान को बहुत लोग प्यार करते हैं – पुरुष, महिलाएं, हिन्दू, मुसलमान, भारतीय, पाकिस्तानी, सभी। कुछ ही समय में वातावरण में फैल गई उष्मा से यह ज़ाहिर होता था कि लोग अपनी भाषाई और धार्मिक भिन्नताओं से कहीं ऊपर उठ कर इस एक व्यक्ति की उपलब्धियों के गीत गा रहे हैं। उनके आपसी मतभेद उन्हें तेजेन्द्र और ज़कीया पर अपना प्यार उंडेलने से नहीं रोक पाये।
तेजेन्द्र की कुछ ग़ज़लों को बहुत सुरीली और क्लासिकल बन्दिशों में प्रस्तुत किया श्री सुभाष आनन्द (एम.बी.ई) हवा में आज जो उनसे थी मुलाक़ात हुई / तपते सहरा में जैसे प्यार की बरसात हुई (राग केदार), शमील चौहान (उपाध्यक्ष – एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स) - घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया है एवं बहुत से गीत ख़्यालों में सो रहे थे मेरे... सुरेन्द्र कुमार ने। सुरेन्द्र कुमार ने एक सरप्राइज़ आइटम के तौर पर ज़कीया ज़ुबैरी का लिखा एक पुरबिया गीत (जाए बसे परदेस हो सइयां, दिल को लागा रोग) भी प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने बहुत सराहा।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्री माधव चन्द्रा (मंत्री - भारतीय उच्चायोग), श्री मधुप मोहता (काउंस‍लर– भारतीय उच्चायोग), डा. कृष्ण कुमार, सोहन राही, रिफ़त शमीम, हुमा प्राईस, जगदीश मित्तर कौशल, कृष्ण भाटिया, सफ़िया सिद्दीक़ी, बानो अरशद, आसिफ़ जीलानी, मोहसिना जीलानी, डा. नज़रुल इस्लाम बोस, अशफ़ाक अहमद, राज चोपड़ा, मन्जी पटेल वेखारिया, तनवीर अख़तर, कौसर काज़मी, इन्द्र स्याल, स्वर्ण तलवार, अनुराधा शर्मा, वेद मोहला, भारत से पधारे डा. जे.सी. बत्तरा, और पाकिस्तान से आये सरायकी भाषा के विद्वान जनाब ताज मुहम्मद लंगा एवं सलीम अहमद ज़ुबैरी उपस्थित थे।
अनिता चौहान
अगला अंक
जुलाई, 2008

-मेरी बात
- नूर ज़हीर की कहानी- “शुरूआत”
- योगेन्द्र कृष्ण की कविताएं।
- पृथ्वीराज अरोड़ा की लघुकथाएं ।
-“भाषान्तर” में लियो ताल्स्ताय के उपन्यास “हाजी मुराद” के धारावाहिक प्रकाशन की चौथी किस्त। हिंदी अनुवाद : रूपसिंह चन्देल
-“नई किताब” तथा “गतिविधियाँ” स्तम्भ।