मंगलवार, 5 अगस्त 2008

गतिविधियाँ

चार पुस्तकों का लोकार्पण

ग़ज़ल में तखल्लुस का काफी महत्व : डा. शेरजंग गर्ग

दिनांक 4 जुलाई 2008 को नई दिल्ली में साहित्य अकादेमी सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण सामारोह के दौरान हिंदी के वरिष्ठ कवि, ग़ज़लकार डा. शरेजंग गर्ग अपने विचार रखते हुए कहा कि अमूमन ग़ज़लकार कोई न कोई तखल्लुस रख लेते हैं, लेकिन उसको साकार नहीं कर पाते हैं। कम भी ऐसे ग़ज़लगो हुए हैं जिन्होंने अपने तखल्लुस को सार्थक किया है। गालिब, मीर जैसे महान शायर भी इसको सार्थक करने में उतने सफल नहीं हो सके। पूरे ग़ज़लकारों पर नज़र दौड़ाई जाए तो बलवीर सिंह ‘रंग’ ऐसे ग़ज़लकार हैं, जिन्होंने अपने ‘रंग’ उपनाम को सार्थक किया है। उसी प्रकार श्री देवेन्द्र ‘मांझी’ ने भी अपने ‘मांझी’ उपनाम को तमाम उपमाओं में पिरोकर ग़ज़ल को एक नई दिशा देने का काम किया है। मांझी को ग़ज़ल की व्याकरण और काफिया-रदीफ की मुक्कमल जानकारी है, लिहाजा वह औरों से अलग दिखता है।
‘हिंदी साहित्य मंथन’ और ‘मंजुली प्रकाशन’ के बैनर तले आयोजित पुस्तक लोकार्पण सामरोह के दौरान एक साथ चार पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। जिसमें इशारे हवाओं के (ग़ज़ल संग्रह), समन्दर के दायरे (ग़ज़ल संग्रह), झुकी पीठ पर बोझ (दोहा संकलन)– तीनों के रचनाकार श्री देवेन्द्र मांझी और तीन कदम (ग़ज़ल संग्रह) जिसका संपादन श्री धीरज चौहान ने किया है, का लोकार्पण किया गया। तीन कदम में तीन ग़ज़लकारों, श्री अशोक वर्मा, श्री देवेन्द्र मांझी और श्री आर.के. पंकज की ग़ज़लें हैं। पुस्तक का विमोचन डा. शेरजंग गर्ग ने किया।
इस अवसर पर श्री रमाशंकर श्रीवास्तव ने कहा कि ‘तीन कदम’ का मिजाज, शायर की रवानगी प्रशंसनीय है। काल्पनिक उड़ानवाली रचनाएं पाठक को प्रभावित नहीं कर पाती हैं, इसको ध्यान में रखकर ही तीनों रचनाकारों ने कलम चलाई है। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक डा. राजेंद्र गौतम ने कहा कि सहयोगी संकलन निकाली जानी चाहिए, इससे एक नई प्रेरणा मिलती है। देवेंद्र मांझी की पुस्तकों पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि मांझी की जूझना साबित करता है कि उन्होंने जिंदगी को काफी शिद्दत के साथ जिया है। मांझी जीवन-संग्राम के एक जुझारू नेता हैं और उनके संघर्षों की आंच उनकी ग़ज़लों में देखने को मिलती है। प्रसिद्ध ग़ज़लकार-कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने मांझी को एक आदमी का रहनुमा बताया और कहा कि वह आम आदमी की पीड़ा-घुटन-एहसास को रूपायित करते हैं। जो बात वे करते हैं वे हर दौड़ में किसी न किसी रूप में प्रासंगिक होती है और यही बात किसी भी रचनाकार को नयी उंचाई और पाठक के डायरी को समृद्ध करती है।
इसके अतिरिक्त डा. अशोक लव और डा. हरीश अरोड़ा ने भी तीनों रचनाकरों के रचनाओं पर अपने विचार रखे और कहा कि मिजाज में थोड़ा अलगाव लिए हुए भी तीनों की मंजिल एक है और तीनों का कथ्य भी; इसी कारण तीन कदम का प्रकाशन संभव हो पाया। कार्यक्रम का मंच-संचालन हिंदी के जाने-माने कवि सुरेश यादव ने बेहद खूबसूरती से किया और तीनों ग़ज़लकारों की चुनिंदा ग़ज़लों का उदाहरण देते हुए बीच-बीच में अपनी बात भी रखी।
रिपोर्ट : सुभाष चन्द्र

कोई टिप्पणी नहीं: