बुधवार, 2 दिसंबर 2009

भाषांतर



धारावाहिक रूसी उपन्यास(किस्त-10)

हाजी मुराद
लियो तोलस्तोय
हिन्दी अनुवाद : रूपसिंह चंदेल

॥ दस ॥

अगले दिन जब हाजी मुराद को वोरोन्त्सोव के पास लाया गया, प्रिन्स का प्रतीक्षा-कक्ष लोगों से खचाखच भरा हुआ था। खुरदरी मूंछोंवाला जनरल पूरी फौजी ड्रैस और तमगे धारण किये हुए, छुट्टी मंजूर करवाने के लिए वहाँ उपस्थित था। एक रेजीमेण्टल कमाण्डर वहाँ था, जिसे रेजीमेण्ट की सप्लाई के दुरुपयोग के लिए अभियोग की चेतावनी मिली हुई थी। डाक्टर आन्द्रेयेवस्की का संरक्षण प्राप्त एक धनी आर्मेनियन वहाँ उपस्थित था, जिसका वोद्का के व्यवसाय में एकाधिकार था और वह अपने अनुबंध का नवीनीकरण करवाना चाहता था। युद्ध में मारे गये एक अधिकारी की पत्नी बच्चों के पालन-पोषण के लिए अपनी पेंशन अथवा राज्य के वित्तीय भत्ते के लिए आयी हुई थी। भव्य जार्जियन वेशभूषा में, जार्जिया का एक बरबाद हो चुका प्रिन्स वहाँ था जो चर्च की खाली सम्पत्ति पर कब्जा चाहता था। काकेशस पर विजय प्राप्त करने के लिए नयी योजना वाले कागजातों का बड़ा पुलिन्दा थामे एक पुलिस अधिकारी भी वहाँ था। इनके अतिरिक्त एक स्थानीय खान वहाँ था जो केवल इसलिए आया था कि वह अपने लोगों के बीच यह बता सके कि प्रिन्स ने किस प्रकार उसका स्वागत किया था।
वे सभी अपने अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे और सुन्दर बालों वाले खूबसूरत युवा परिसहायक द्वारा एक के बाद दूसरा प्रिन्स की स्टडी में भेजे जा रहे थे।
जब हाजी मुराद ने हल्की लंगड़ाहट के साथ प्रतीक्षा कक्ष में प्रवेश किया, सभी की आँखें उसकी ओर घूम गयीं और कक्ष के विभिन्न कोनों से अपने नाम की फुसफुसाहट उसे सुनाई दी थी।
हाजी मुराद ने सुन्दर चाँदी का गोटा लगे खाकी कपड़े पर लंबा सफेद टयूनिक पहना हुआ था। उसकी पतलून और चुस्त-दुरस्त जुराबें काली थीं, और उसने पगड़ी के साथ फर का टोप पहना हुआ था -जिस पगड़ी को पहनने के कारण उसे अहमद खां द्वारा अपमानित और जनरल क्लूगेनाऊ द्वारा गिरफ्तार किया गया था, और वही शमील से उसके मिलने का कारण बना था। हल्की लंगड़ाहट के साथ छोटी टांग पर अपने छरहरे शरीर को झुलाता हुआ हाजी मुराद तेजी से प्रतीक्षा कक्ष की फर्श पर चल रहा था। उसकी बड़ी आँखें शांतिपूर्वक सामने की ओर देख रहीं थीं और किसी को भी न देखने का आभास दे रही थीं।
खूबसूरत सहायक ने उसका स्वागत किया और तब तक बैठ जाने की प्रार्थना की जब तक वह प्रिन्स के पास जाने के लिए उसे नहीं पुकारता। लेकिन हाजी मुराद ने बैठने से इंकार कर दिया। उसने कटार पर अपना हाथ रखा और एक पैर आगे बढ़ाकर वहाँ एकत्रित लोगों का तिरस्कारपूर्वक पर्यवेक्षण करता हुआ खड़ा रहा।
एक दुभाषिया, प्रिन्स तर्खानोव हाजी मुराद के पास आया और उसे वार्तालाप में व्यस्त कर लिया। हाजी मुराद ने अनिच्छापूर्वक और एकाएक उत्तर दिए। एक कुमिक प्रिन्स, जिसने पुलिस अधिकारी के विरुद्ध शिकायत की थी, स्टडी से बाहर आया, और उसके पश्चात् सहायक ने हाजी मुराद को बुलाया और अंदर का मार्ग दिखाने के लिए स्टडी के दरवाजे तक उसके साथ गया।
वोरोन्त्सोव ने मेज के पास खड़े होकर हाजी मुराद का स्वागत किया। वृद्ध सुप्रीम कमाण्डर का गोरा चेहरा पिछले दिन जैसा मुस्कराहट भरा नहीं था, बल्कि कठोर और गंभीर था।
बड़ी मेज और हरे रंग की बड़ी बंद खिड़कियों वाले विशाल कमरे में प्रवेश करते ही हाजी मुराद ने धूप से झुलसे अपने छोटे हाथों को छाती पर रखा जहाँ सफेद टयूनिक की तहें एक दूसरे को काटती थीं; और, ऑंखे झुकाकर कुमिक भाषा में, जिसे वह भलीभाँति बोल सकता था, धीरे-धीरे, स्पष्ट और सम्मानपूर्वक बोला।
''महान जार और आपके उदात्त संरक्षण के लिए मैंने अपना आत्म-समर्पण किया है। मैं खून की आखिरी बूंद तक बा-एतेमाद (निष्ठापूर्वक) गोरे जार की सेवा करने का वचन देता हँ और आपके और मेरे दुश्मन शमील के खिलाफ लड़ाई में फायदामंद होने की उम्मीद करता हँ।''
दुभाषिये को सुन लेने के बाद वोरोन्त्सोव ने हाजी मुराद की ओर, और हाजी मुराद ने वोरोन्त्सोव की ओर देखा।
दोनों की आँखें एक-दूसरे से मिलीं और आँखों ने एक दूसरे से बहुत कुछ कह दिया, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता था और न ही बिल्कुल वैसा जैसा दुभाषिये ने कहा था। उन्होंनें बिना शब्दों के पूर्ण सत्य सीधे एक दूसरे को अभिव्यक्त कर दिया था। वोरोन्त्सोव की आँखों ने कहा कि वह हाजी मुराद के कहे एक भी शब्द पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि वह जानता था कि वह रूसियों के सब कुछ का शत्रु था, और सदैव रहेगा, और वह केवल इसलिए इस समय आत्म-समर्पण कर रहा है क्योंकि ऐसा करने के लिए वह बाध्य था। हाजी मुराद ने यह समझ लिया, फिर भी उसने उसे अपनी निष्ठा का पूर्ण आश्वासन दिया। हाजी मुराद की आँखों ने कहा कि वोरोन्त्सोव जैसा बूढ़ा आदमी मृत्यु के विषय में सोच रहा होगा, न कि युद्ध के विषय में। हालांकि अगला बूढ़ा हो चुका था, फिर भी वह धूर्त था, और उसे उससे सतर्क रहना आवश्यक था। और वोरोन्त्सोव ने यह सब समझा, फिर भी उसने हाजी मुराद को बताया कि युद्ध की सफलता के लिए वह क्या आवश्यक समझता था।
''उससे कहो'' वोरोन्त्सोव ने लापरवाही से नौजवान दुभाषिये से कहा, ''कि हमारे सम्राट उतने ही दयालु हैं जितने कि वह शक्तिशाली हैं और पूरी संभावना है, कि मेरे अनुरोध पर, वे उसे क्षमा कर देगें और उसे अपनी सेवा में अंगीकर कर लेगें। तुमने अनुवाद कर दिया।'' हाजी मुराद की ओर देखते हुए उसने पूछा। ''जब तक मैं अपने स्वामी का कृपापूर्ण निर्णय प्राप्त करूं, उससे कहो, उस समय तक उसके स्वागत और उसे अपने साथ ठहाराने की व्यवस्था की जिम्मेदारी मेरी होगी। यह उसे स्वीकार्य है।''
हाज़ी मुराद ने एक बार पुन: हाथ अपने वक्षस्थल पर रखा और सोत्साह बोलना प्रारंभ किया।
उसने कहा, जैसा कि दुभाषिये ने वर्णन किया, कि 1839 में, जब वह आवेरिया में शासन करता था, उसने निष्ठापूर्वक रूसियों की सेवा की थी और उन्हें कभी धोखा नहीं दिया था लेकिन उसके शत्रु अहमद खाँ ने, जो उसके पतन का षडयंत्र करना चाहता था, जनरल क्लूगेनाऊ से उसके विषय में निन्दात्मक बातें कही थीं।
''हाँ, मैं जानता हँ'' वोरोन्त्सोव ने कहा ( हालांकि यदि वह जानता भी था, तो वह उसे बहुत पहले भूल चुका था ) ''मैं जानता हँ,'' बैठते हुए उसने कहा और दीवार के पास पड़े दीवान की ओर संकेत करते हुए हाजी मुराद से बैठने के लिए कहा। लेकिन हाजी मुराद बैठा नहीं। अपने मजबूत कंधों को उचका कर उसने संकेत दिया कि इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति की उपस्थिति में वह बैठना नहीं चाहता। वह पुन: बोला :
''अहमद खाँ और शमील, दोनों मेरे शत्रु हैं,'' दुभाषिये को संबोधित करते हुए उसने कहना जारी रखा। ''प्रिन्स को बता दो कि अहमद खाँ मर चुका है और मैं उससे प्रतिशोध नहीं ले सका, लेकिन शमील अभी भी जीवित है, और जब तक मैं उससे बदला नहीं चुका लेता, मैं मरूंगा नहीं,'' त्यौरियाँ चढ़ा और दांतों को भींचते हुए वह बोला।
''ठीक है '' वोरोन्त्सोव शांतिपूर्वक बोला, ''शमील से वह किस प्रकार बदला चुकाना चाहता है ?'' दुभाषिये से उसने कहा, ''और उससे कहो कि वह बैठ जाये।''
हाजी मुराद ने पुन: बैठने से इंकार कर दिया, और प्रश्न का उत्तर यह कहते हुए दिया कि वह रूसियों के पास शमील को नष्ट करने में उनकी सहायता करने के लिए आया है।
''अच्छा, अच्छा,'' वोरोन्त्सोव बोला, ''वास्तव में वह करना क्या चाहता है ? बैठ जाइये, बैठ जाइये...।''
हाजी मुराद बैठ गया और बोला कि यदि वे उसे लेज्गियन मोर्चे पर भेजें और उसे सेना दें तो वह इस बात की गारण्टी देता है कि वह सम्पूर्ण डागेस्तान पर अधिकार कर लेगा और तब शमील वहाँ डटे रहने में असमर्थ हो जाएगा।''
''यह अच्छा है। यह संभव है,'' वोरोन्त्सोव ने कहा, ''मैं इस पर विचार करूगा।''
दुभाषिये ने वोरोन्त्सोव के शब्दों का हाजी मुराद के लिए अनुवाद किया। हाजी मुराद क्षणभर तक सोचता रहा।
''सरदार को बताएं,'' उसने कहा, '''कि मेरा परिवार मेरे शत्रु के हाथों में है, और जब तक मेरा परिवार पहाड़ों में है, मैं बंधा हुआ हँ और मैं सेवा नहीं कर सकता। यदि मैं उस पर सीधे आक्रमण करता हूँ तो वह मेरी पत्नी, मेरी माँ ओर मेरे बच्चों को मार देगा। युद्ध- बन्दियों के बदले में प्रिन्स मेरे परिवार को मुक्त करा लें, और तब मैं या तो शमील को उखाड़ फेकूंगा या मर जाऊँगा।''
''अच्छा, अच्छा,'' वोरोन्त्सोंव बोला, ''हम इस विषय में सोचेगें। अब उसे सेनाध्यक्ष के पास ले जाओ और उसे विस्तार से उसकी स्थिति, उसकी योजनाओं और उम्मीदों के विषय में बताओ।''
इस प्रकार वोरोन्त्सोव के साथ हाजी मुराद का पहला साक्षात्कार समाप्त हुआ।

उसी शाम एशियाई ढंग से नव-सज्जित थियेटर में इटैलियन ओपेरा का एक प्रदर्शन था। वोरोन्त्सोव बॉक्स में बैठा हुआ था। सिर पर पगड़ी के ऊपर टोप पहने हाजी मुराद की लंगड़ाती स्पष्ट आकृति नाटयशाला में प्रकट हुई। वोरोन्त्सोव द्वारा उसके साथ सम्बद्ध किया गया एक सहायक, लोरिस-मेलीकोव के साथ वह प्रविष्ट हुआ और आगे की पंक्ति में सीट ग्रहण कर बैठ गया। वह प्राच्य मुस्लिम गौरव को प्रदर्शित करने वाले प्रथम दृश्य तक बैठा रहा। उसने आश्चर्य का कोई भाव व्यक्त नहीं किया, बल्कि एक प्रकार से वह उदासीन-सा बैठा रहा। फिर वह उठा, दर्शकों पर शांत दृष्टि डाली और सभी दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता हुआ चला गया।
अगला दिन सोमवार था। इस दिन वोरोन्त्सोव प्राय: 'घर' में रहता था। शिशिरोद्यान के जगमगाते हॉल में दिखाई न देने वाला एक ऑकेस्ट्रा ऊँचे स्वर में बज रहा था। गले, बांहों और वक्षस्थलों को प्रदर्शित करने वाले परिधानों में सजी-संवरी युवा और प्रौढ़ महिलाएं आकर्षक वस्त्र पहने हुए पुरुषों की बाहों में तेजी से थिरक रही थीं। उपहार कक्ष में लाल जैकेट, जुराबों और स्लिपर्स में पहाड़ी बैरे शैम्पेन सर्व कर रहे थे और महिलाओं को मिष्ठान्न परोस रहे थे। सरदार की पत्नी, उम्रदराज होने के बावजूद, तंग वस्त्रों में गर्मजोशी से मुस्कराती हुई अतिथियों के बीच घूम रही थी और दुभाषिये के माध्यम से उसने कुछ कृपालु शब्द हाजी मुराद से कहे थे, जो उसी उदासीन भाव से लोगों का निरीक्षण कर रहा था, जैसा थियेटर में उसने किया था। मेहमानदारी के बाद अंगों का कुछ अधिक ही प्रदर्शन करने वाली दूसरी महिलाएं हाजी मुराद के पास आयीं और सभी नि:संकोच उसके सामने खड़ी हो गयीं, मुस्कराती रहीं, और फिर वही प्रश्न किया -- 'उसने जो देखा उसे कैसा लगा ?' वोरोन्त्सोव भी सोने के तमगे धारण किये, 'शोल्डर ब्रेड', गले में सफेद क्रास और रिबन पहने हुए आया और स्पष्टरूप से आश्वस्त होते हुए भी, हाजी मुराद के सभी प्रश्नकर्ताओं की भाँति, उससे वही प्रश्न किया, कि उसने जो सब कुछ देखा उसे पसंद आया या नहीं। और हाजी मुराद ने वोरोन्त्सोव को बिना यह कहे कि उसने जो देखा अच्छा था या खराब, उसने वही उत्तर दिया जो उसने सभी को दिया था, कि उन लोगों के पास उस जैसा कुछ नहीं था।
हाजी मुराद ने उस नृत्य सभा में वोरोन्त्सोव से अपने परिवार की फिरौती के प्रश्न को छेड़ना चाहा था, लेकिन वोरोन्त्सोव ने न सुनने का अभिनय किया था और दूर चला गया था। तब लोरिस मेलीकोव ने हाजी मुराद से कहा था कि वह स्थान सौदेबाजी के लिए उपयुक्त नहीं था।
जब ग्यारह बजे का घण्टा बजा, हाजी मुराद ने मेरी वसीलीव्ना द्वारा दी गई घड़ी में समय देखा, और लोरिस -मेलीकोव से पूछा कि क्या वह जा सकता है। लोरिस मेलीकोव ने कहा कि वह जा तो सकता है, लेकिन बेहतर होगा कि वह रुका रहे। फिर भी हाजी मुराद रुका नही, और उसके लिए जिस गाड़ी की व्यवस्था की गई थी, उसमें अपने ठहरने के लिए निर्धारित मकान की ओर चला गया था।
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(क्रमश: जारी…)

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