
दो लघुकथाएं/श्यामसुंदर अग्रवाल
लड़का लड़की
गुप्ताजी की बेटी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था- एक लड़का था, दूसरी लड़की। पति-पत्नी दोनों हालचाल जानने व बधाई देने के लिए बेटी की ससुराल पहुँचे।
दो-तीन घंटे वहाँ व्यतीत करने के पश्चात् जब वे वापस आने लगे तो समधी ने बात छेड़ी, ''दो नवजात शिशुओं का एक साथ पालन-पोषण करना बहुत कठिन है। अगर दोनों में से एक को आप ले जाते तो...।''
गुप्ताजी को समधी का सुझाव ठीक लगा। उन्होंने पत्नी से विचार-विमर्श किया। उनके घर में एक पौत्री थी और बेटी के पास पहले प्रसव से चार वर्ष का एक बेटा था। अगर वे लड़के को ले जाएँ तो दोनों परिवारों में लड़का-लड़की की जोड़ी बन जाएगी।
उन्होंने अपनी मंशा बेटी के ससुर के पास जाहिर कर दी।
लड़का ले जाने की बात सुन ससुर घबरा गया। थोड़ा सहज होने के बाद बोला, ''मैं श्रीमती जी से सलाह करके बताता हूँ।''
थोड़ी देर बाद वह आया और कहा, ''चलो रहने दो, आपको किसलिए तकलीफ़ देनी है। जैसे-तैसे हम खुद ही पाल लेंगे।''
औरत का दर्द
दो दिन से लक्ष्मी की सोलह वर्षीया बेटी भी मजदूरी करने उसके साथ ही आने लगी थी।
दोपहर को छुट्टी के समय रोटी खाते वक्त उसकी बस्ती की ही कमला बोली-''तू राधा को क्यूं संग लाने लग गई लक्ष्मी ?''
''संग न लाऊँ तो क्या करूँ कमला ? एक तो आंखां सामनै रवै, दूसरा चार पैसा भी बनै।'' लक्ष्मी की आवाज़ से चिंता झलक रही थी।
''ठेकेदार करकै कहूँ मैं तो। मूए की निगा ठीक नीं। जवान भैन-बेटी तो घर में ई रवै तो ठीक।''
रोटी का कौर लक्ष्मी के गले में जहाँ था, वहीं अटक गया। उसने डिब्बे में से पानी पीकर गला साफ किया। फिर इधर-उधर देखा और गहरी सांस लेकर धीरे से बोली, ''घर में किसके पास छोड़ूं कमला ? बाप इसका दारू पीकै पडया रवै सारा दिन। उसकी निगा तो ठेकेदार सै बी खराब लगै। ठेकेदार से तो मैं बचा लूंगी, उससै कौन बचावैगा छोरी नै?''
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3 टिप्पणियां:
श्यामसुंदर अग्रवाल जी की दोनों लघुकथाएँ हर दृष्टि से उत्कृष्ट हैं।
दोनों लघु कथाएँ उत्कृष्ट
श्याम सुन्दर जी की लघुकथाएँ इस विधा की सशक्त अभिव्यक्ति हैं!
इला
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